महायुति में खींचतान: शिंदे की स्थिति कमजोर, अजित पवार बने बीजेपी के लिए ट्रम्प कार्ड

महाराष्ट्र में महायुति सरकार के शपथ ग्रहण से ठीक पहले सत्ता के समीकरण लगातार बदल रहे हैं। शिवसेना के सीएम एकनाथ शिंदे, जो कभी बीजेपी के लिए मजबूत सहयोगी थे, आज महायुति में अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बीजेपी की 132 सीटों की निर्णायक बढ़त और अजित पवार के सक्रिय पावरगेम ने महायुति के भीतर शिंदे की स्थिति कमजोर कर दी है।

शिंदे की मांग और शिवसेना का रुख

शिवसेना चाहती है कि नई सरकार में उन्हें गृह मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जाए। शिवसेना नेताओं का मानना है कि इससे सरकार में सत्ता संतुलन कायम रहेगा। हालांकि, बीजेपी की प्राथमिकता गृह विभाग को मुख्यमंत्री के पास ही रखना है। शिवसेना नेता दीपक केसरकर ने शिंदे की नेतृत्व क्षमता को स्वीकारने की बात कही है, लेकिन इस बयान से सवाल खड़ा होता है कि शिंदे के 57 विधायकों के बावजूद उनकी बार्गेनिंग पावर क्यों कम हुई है?

अजित पवार का पावरगेम

अजित पवार, जो एनसीपी गुट का नेतृत्व कर रहे हैं, महायुति में अपनी अहमियत बढ़ाने में सफल रहे हैं। 41 विधायकों के साथ बीजेपी को समर्थन देने वाले पवार ने शिवसेना के लिए स्थिति और जटिल बना दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शिंदे को यह उम्मीद नहीं थी कि अजित पवार की एंट्री से उनकी स्थिति कमजोर हो जाएगी।

शिवसेना की चुनौतियां

बीजेपी को मौजूदा समीकरण में संख्याबल की कोई कमी नहीं है। अजित पवार का समर्थन बीजेपी को सत्ता में स्थायित्व प्रदान करता है, जबकि शिवसेना के बिना भी सरकार टिक सकती है। शिंदे शिवसेना के लिए यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इससे उनकी बार्गेनिंग पावर पूरी तरह समाप्त हो सकती है।

पिछली अहमियत और बदलती भूमिका

2022 में जब उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने के लिए शिंदे ने बगावत की थी, तब उनकी राजनीतिक अहमियत चरम पर थी। उस समय बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद दिया था। लेकिन 2024 के चुनाव परिणामों के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। बीजेपी के पास अब स्पष्ट बहुमत है और अजित पवार का समर्थन भी।

महायुति में सत्ता का संतुलन

शिवसेना गृह विभाग की मांग कर रही है, जबकि वित्त विभाग एनसीपी को दिए जाने की संभावना है। लेकिन गृह विभाग को लेकर शिवसेना और बीजेपी के बीच खींचतान जारी है। शिवसेना का मानना है कि यह मंत्रालय मिलने से उनकी स्थिति मजबूत होगी।

बीजेपी की रणनीति

बीजेपी का रुख स्पष्ट है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास रहेगा। 1995 से पहले तक महाराष्ट्र में यह परंपरा रही है, लेकिन बाद में यह मंत्रालय सहयोगी दलों को दिया जाता रहा। बीजेपी इस परंपरा को बदलते हुए अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

नया समीकरण और आगे की राह

महायुति में शक्ति का संतुलन अजित पवार की ओर झुक गया है। शिंदे की राजनीतिक चुनौती यह है कि वह अपनी मांगों को किस हद तक पूरा करवा सकते हैं। पवार की राजनीतिक चाल और बीजेपी के मजबूत रुख ने शिवसेना को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। अब देखना यह होगा कि महायुति सरकार के गठन के बाद सत्ता का समीकरण किस दिशा में जाता है। 6 दिसंबर को शपथ ग्रहण के साथ ही महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन फिलहाल शिंदे और शिवसेना के लिए यह समय राजनीतिक चुनौतियों से भरा है।

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