नई दिल्ली, 26 मार्च 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश के कुछ हिस्सों पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला के स्तन पकड़ना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अंतर्गत नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे संवेदनशीलता की कमी का उदाहरण बताया।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस भूषण आर गवई ने टिप्पणी की कि एक न्यायाधीश द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करना खेदजनक है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के कुछ पैराग्राफ, विशेष रूप से 24, 25 और 26, न्यायाधीश की संवेदनशीलता की कमी को दर्शाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस मामले में सुनवाई पूरी होने के चार महीने बाद निर्णय सुनाया गया, जो निर्णय लेने में देरी को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को इस मामले में सहायता करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद मंगलवार को होगी।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि 11 वर्षीय लड़की के मामले में आरोपी द्वारा उसके स्तन पकड़ना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना महिला की गरिमा पर आघात करता है, लेकिन इसे बलात्कार के प्रयास के रूप में नहीं देखा जा सकता
