महाराष्ट्र में पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी भाषा को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के राज्य सरकार के फैसले ने सियासी पारा गर्मा दिया है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) को लागू करते हुए यह निर्णय लिया, जिससे महाराष्ट्र तीन भाषा नीति लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
हालांकि, इस फैसले का सबसे तीखा विरोध महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे कर रहे हैं। उन्होंने सरकार को सीधे शब्दों में चेतावनी दी: “हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं। अगर यह जबरदस्ती की गई तो हम आंदोलन करेंगे। स्कूलों में हिंदी की किताबें नहीं दी जाएंगी।”
“हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं”
राज ठाकरे ने दो टूक कहा कि हिंदी, भारत की एक भाषा मात्र है, न कि राष्ट्रभाषा। “अगर केंद्र को एकता बनानी है तो भाषा थोपना उसका तरीका नहीं हो सकता। क्या आप तमिलनाडु या केरल में मराठी पढ़ाएंगे? नहीं ना? तो महाराष्ट्र में हिंदी क्यों थोप रहे हैं?” उन्होंने सवाल उठाया।
“यह फूट डालो और राज करो की नीति”
राज ठाकरे का आरोप है कि राज्य सरकार जनता का ध्यान भटकाने के लिए ‘मराठी बनाम मराठी’ संघर्ष को हवा दे रही है। “जब बेरोजगारी, कृषि संकट और आर्थिक बदहाली जैसे मुद्दों पर सरकार के पास जवाब नहीं होता, तो वो भाषा के मुद्दे लाकर भावनाएं भड़काती है,” ठाकरे ने कहा।
“दक्षिण में हिम्मत क्यों नहीं?”
राज ठाकरे ने सरकार से पूछा कि यदि सरकार को सच में हिंदी को लेकर इतना उत्साह है, तो वह इसे दक्षिण भारत के राज्यों में क्यों नहीं लागू करती? “क्या फडणवीस सरकार तमिलनाडु में यह फैसला लागू कर सकती है?”
MNS की चेतावनी: स्कूलों में हिंदी किताबों की नो एंट्री
राज ठाकरे ने ऐलान किया कि अगर हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य रूप से लागू किया गया तो मनसे हिंदी किताबों की बिक्री और वितरण को रोकेगी। उन्होंने स्कूल प्रशासन को भी चेतावनी दी कि इस फैसले का विरोध हर स्तर पर किया जाएगा।
CM फडणवीस की सफाई
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि “नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को स्थानीय के साथ-साथ देश की अन्य प्रमुख भाषाएं सिखाना है। हम चाहते हैं कि छात्र मराठी के साथ हिंदी और अंग्रेजी भी सीखें ताकि वे राष्ट्रीय स्तर पर संवाद कर सकें।”
अब आगे क्या?
राज्य में भाषा को लेकर उठे इस विवाद ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। क्या सरकार अपने फैसले पर कायम रहेगी या MNS के विरोध के आगे झुकेगी, यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि “भाषा” एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्र बन चुकी है।
