बिहार में इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है, वहीं मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान कर एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। इस फैसले ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है, जहां जाति आधारित वोट बैंक हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता आया है।
मोदी सरकार के इस फैसले को विपक्ष जहां अपनी वैचारिक जीत बता रहा है, वहीं बीजेपी ने विपक्ष के हाथ से एक अहम मुद्दा छीन लिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी के तेजस्वी यादव लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग करते आ रहे थे। अब केंद्र की ओर से जनगणना का ऐलान विपक्ष को असहज स्थिति में ला सकता है।
बिहार की राजनीति में जाति समीकरण की अहम भूमिका
बिहार की सियासत में जातिगत समीकरण बेहद अहम हैं। हालिया जातीय सर्वे के अनुसार, राज्य में ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी कुल मिलाकर 63 प्रतिशत है, जबकि सवर्ण 15.52 प्रतिशत और अनुसूचित जाति-जनजाति मिलाकर 21 प्रतिशत से अधिक हैं। ऐसे में “जितनी संख्या, उतनी हिस्सेदारी” का नारा अब और तेज होने की संभावना है।
जातिगत जनगणना से यह मांग भी जोर पकड़ सकती है कि दलित समुदाय को जनसंख्या के अनुपात में नेतृत्व और प्रतिनिधित्व मिले। अभी तक नीतीश कुमार (कुर्मी), तेजस्वी यादव (यादव) और बीजेपी के सवर्ण-ओबीसी नेताओं का वर्चस्व रहा है, जबकि दलित नेतृत्व को शीर्ष भूमिका में कम देखा गया है।
2024 लोकसभा चुनाव में NDA को बड़ा नुकसान
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में भारी नुकसान हुआ। 2019 में जहां ओबीसी समुदाय का एनडीए को 50% समर्थन मिला था, वहीं 2024 में यह घटकर 29% रह गया। कुर्मी-कोयरी समुदाय का समर्थन भी 56% से गिरकर 44% हो गया। यह गिरावट दिखाती है कि सामाजिक समीकरणों में बदलाव हो रहा है और बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ा।
मोदी सरकार की रणनीति: EBC और OBC पर फोकस
जातिगत जनगणना का यह फैसला बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को साधने की कोशिश कर रही है। पिछले दो दशकों में बीजेपी ने यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण से इतर जातियों में प्रभाव बढ़ाया है। अब जातिगत आंकड़ों को आधार बनाकर इन समुदायों के बीच यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि केंद्र सरकार उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए गंभीर है।
विपक्ष की रणनीति पर असर
जहां कांग्रेस और राजद जातिगत जनगणना को अपने एजेंडे का हिस्सा मानते रहे हैं, वहीं अब केंद्र सरकार के इस फैसले ने उनकी चुनावी रणनीति को झटका दिया है। हालांकि, कांग्रेस अब इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की तैयारी में है और घर-घर जाकर यह संदेश दे रही है कि केंद्र ने यह फैसला विपक्ष के दबाव में लिया है।
