कोटा 17 सितम्बर। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर और साहित्यक संस्था सर्जना की सहभागिता में जन-कवि जगदीश विमल गुलकंद का जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन रविवार को शोपिंग सेन्टर स्थित बिनानी सभागार में आयोजित किया गया। जिसमें जन कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर उपस्थित रचनाकारों ने विचार व्यक्त किये।
जनकवि जगदीश विमल गुलकन्द के भव्यशताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए देश के जाने माने समाजशास्त्री एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ आनन्द कश्यप ने कहा कि आज साहित्यकार के सामने अपनी रचनाधर्मिता को ऊर्जस्वित कर समाज तथा राजनीति को पहल कर संस्कारित करने की सबसे बड़ी चुनौती है। परिपक्त लोकतंत्र की सबसे महत्पूर्व पहचान यह है कि वह कभी किसी व्यक्ति और सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था को अपने देश की सांस्कतिक चेतना तथा शिक्षा-साहित्य-कला की सर्जना पर हावी नहीं होने देता। समारोह को उद्बोधित करते हुए हिन्दी साहित्य के प्रखर समीक्षक वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जीवनसिंह मानवी ने कहा कि साहित्य एवं कला सृजन बिना किसी सामाजिक सरोकार सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि रचनात्मक सृजनशीलता समाज की पतनशील परिस्थितियों को बदलने के लिए सांस्कृतिक उत्प्रेरक है तथा समाज और सभ्यता के विकास तथा बदलाव में सृजन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
जनकवि जगदीश विमल के व्यक्तित्व एवं कृतिव्य पर प्रकाश डालते हुए समारोह के संयोजक वरिष्ठ जनकवि वृजेन्द्र कौशिक ने कहा कि साहित्य सृजन एक बहुत ही जिम्मेदारीपूर्ण सामाजिक दायित्व है। उन्होने गुलकन्द जी के काव्य संग्रह ‘अग्निगंधा’ में छपे ’मेरा मानना है’ के इस कथन को उदघृत किया कि रचनाकार का न कोई देश होता है न धर्म, न कोई निजी समाज होता है न परिवार इसलिए हर देश, हर धर्म, हर समाज और हर व्यक्ति उसका अपना सगा होता है और इसलिए वह मानवीय रिश्तों की पक्षधरता करता है। समारोह में अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी विचार व्यक्त किये।
समारोह की भव्य उपलब्धि को रेखांकित करते हुए दिल्ली से आये उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकार प्रसिद्ध शायर डॉ. फारूख बक्शी ने कोटा के रचनाकारों के पारिवारिक भाईचारे और यहां की गंगा-जमना सांस्कृतिक विरासत को बेमिसाल बताते हुए समाज में नफरत फैलाने वाली साजिशों को नाकाम करने के लिए जनतांत्रिक जीवन मूल्यों को समृद्ध करने वाले साहित्य का सृजन करने के आह्वान के साथ समारोह के समापन किया गया।
