महाश‍िवरात्रि पर जानें मां पार्वती को कैसे मिला था शिवजी का साथ

MahaShivratri: हिंदू धर्म को मानने वाले हर व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि उसे शिव-पार्वती जैसा जीवन साथी मिले। सभी लड़कियां भगवान भोलेनाथ जैसे पुरुष को अपने पति के रूप में पाने की लालसा रखती हैं। वहीं पुरुष भी चाहते हैं कि उनके साथ जीवन साथी के रूप में गौरी की मां की तरह चलने वाली महिला हो। आधुनिक समय में भी सच्चे प्रेम की परिभाषा महादेव और माता पार्वती ही हैं। लेकिन दूसरी मुलाकात आसान नहीं थी और उन्होंने भी सैकड़ों साल इंतजार किया। भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती भी वियोग के दर्द से नहीं बच सके। हालांकि आखिर में इनके प्यार की जीत हुई और दोनों कई सालों तक साथ रहे। यह शिवरात्रि का एक सुंदर त्योहार है। उस दिन महादेव और गौरी मां का विवाह हुआ था।

महादेव ने दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती से विवाह किया। दक्ष को शिव पसंद नहीं थे इसलिए उन्होंने कभी भी महादेव को अपने दामाद के रूप में स्वीकार नहीं किया। तुरंत दक्ष प्रजापति ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने भगवान शिव और सती को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया। जब माता सती ने इस बारे में सुना तो वे बहुत दुखी हुईं लेकिन फिर भी उन्होंने जाने का फैसला किया। शिवजी के समझाने पर भी सती जी नहीं रुकीं और यज्ञ में भाग लेने के लिए अपने पिता के घर पहुंच गईं। यहां दक्ष प्रजापति ने महादेव का हिंसक अपमान किया, जिसे माता सती सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। कहते हैं कि देवी सती ने देह त्याग करते समय यह संकल्प किया था कि वह पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म ग्रहण कर पुन: भगवान शिव की अर्धांगिनी बनेंगी। हालाँकि, इसके लिए शिवजी ने सैकड़ों वर्षों तक प्रतीक्षा की है।

देवी सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। पर्वतराज के घर जन्म लेने के कारण उनका नाम पार्वती पड़ा। माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए इतनी घोर तपस्या की थी कि चारों ओर कोहराम मच गया। उन्होंने कई वर्षों तक अन्न और जल चढ़ाकर महादेव की पूजा की। इस दौरान वे प्रतिदिन बेलपत्र और शिवलिंग पर जल चढ़ाते थे, ताकि भोले भंडारी उनकी तपस्या से संतुष्ट हो जाएं। अंत में, शिवशंकर देवी पार्वती की तपस्या और शुद्ध प्रेम से संतुष्ट हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। उन मान्यताओं के अनुसार, शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि उन्होंने अब तक एक अलग जीवन व्यतीत किया है और उनके पास अन्य देवताओं की तरह घर नहीं है, इसलिए वे उन्हें कोई गहने, राजघराना नहीं दे पाएंगे। तब माता पार्वती ने केवल भगवान शिव का सानिध्य मांगा और विवाह के बाद वे खुशी-खुशी कैलाश पर्वत पर रहने लगीं। आज शिवजी और माता पार्वती का समृद्ध परिवार है।

Rajeev Kushwaha
Author: Rajeev Kushwaha

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