राज्यसभा में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्णय लिया है। विपक्षी गठबंधन इंडिया से जुड़े सांसदों ने इस सिलसिले में राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को एक औपचारिक प्रस्ताव सौंपा है। कांग्रेस और अन्य दलों का आरोप है कि सभापति द्वारा उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन पक्षपातपूर्ण तरीके से किया जा रहा है।
क्या है विपक्ष का कहना?
कांग्रेस सांसदों ने इसे संसदीय लोकतंत्र की गरिमा बचाने का कदम बताया। उनका कहना है कि सभापति की कार्यशैली विपक्षी दलों की आवाज दबाने वाली रही है। कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “यह देश का दुर्भाग्य है कि सत्ताधारी दल और सरकार संसद को चलने नहीं दे रहे हैं। विपक्ष जब भी महंगाई, बेरोजगारी या भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठाना चाहता है, तो सरकार इसे रोकने के प्रयास करती है। यह संसद के इतिहास में एक काला अध्याय है।”
अविश्वास प्रस्ताव पर समर्थन और हस्ताक्षर
प्रस्ताव को अनुच्छेद 67-बी के तहत लाया गया है, जिस पर करीब 60 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। यह संख्या प्रस्ताव को चर्चा के लिए पेश करने के लिए पर्याप्त मानी जाती है। विपक्ष का कहना है कि यह निर्णय उनके लिए कठिन था, लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए जरूरी हो गया था।
सत्ता पक्ष पर गंभीर आरोप
विपक्ष का आरोप है कि राज्यसभा में सत्ता पक्ष को हर स्थिति में अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है, जबकि विपक्ष को यह अधिकार नहीं मिलता। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा, “हम सदन चलाना चाहते हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं। लेकिन सत्ता पक्ष ने जानबूझकर संसद की कार्यवाही को बाधित किया है।”
संसदीय मर्यादा पर सवाल
विपक्ष का दावा है कि सत्ता पक्ष के दबाव में संसद की कार्यवाही बार-बार बाधित हो रही है। सुरजेवाला ने कहा कि जब भी महंगाई या बेरोजगारी जैसे शब्दों का जिक्र होता है, सत्ताधारी दल बहस से बचने के लिए संसद स्थगित करवा देते हैं।
आगे की राह अ विश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, इसे लेकर राज्यसभा में चर्चा और मतदान होगा। यदि विपक्ष का प्रस्ताव पारित होता है, तो यह राज्यसभा के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना होगी।