बून्दी, 29 फरवरी। कृषि विज्ञान केन्द्र, श्योपुरिया बावड़ी पर प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ, जिसमें जिले के 37 प्रगतिशील कृषकों ने प्रशिक्षण में भाग लिया।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष प्रो. हरीश वर्मा ने प्रशिक्षण के दौरान बताया कि आजकल खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से किसानों की मिट्टी जहरीली हो गई है, जिसका दुष्प्रभाव मनुष्यों पर एवं पशु-पक्षियों पर दिखने लगा है। अभी मनुष्यों में कम उम्र में उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और हृदयाघात तथा पशुओं में बांझपन एवं बच्चेदानी बाहर निकलना, गर्भ न ठहरना इत्यादि बहुत अधिक होने लगा है। इन सबसे बचने का उपाय प्राकृतिक खेती है।
डाॅ. वर्मा ने प्राकृतिक खेती में कीट प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों की जानकारी एवं रबी फसलों में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले मित्र कीटों की पहचान बताने के साथ इनके संरक्षण के उपाय बताये। डाॅ. वर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती में खर्चा नहीं है, इसलिए किसानों के लिए वरदान साबित होगी प्राकृतिक खेती।
प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. घनश्याम मीणा ने किसानों को प्रशिक्षण के दौरान प्राकृतिक खेती की आवश्यकता, प्राकृतिक खेती के लाभ, प्राकृतिक खेती में पोषक तत्व प्रबंधन, कीट एवं व्याधि नियंत्रण के विभिन्न तरीकों के बारे में विस्तार से बताया।
डाॅ. मीणा ने प्राकृतिक एवं जैविक खेती में अन्तर, प्राकृतिक खेती का महत्व एवं प्राकृतिक खेती के लिए पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए जीवामृत, घनजीवामृत बनाना, फूल पानी, गुड़जल अमृत पानी बनाना एवं हरी खाद के उपयोग के तरीकों के बारे में बताया। बीज उपचार के लिए बीजामृत बनाना एवं इसके उपयोग व महत्व तथा पौध संरक्षण के लिए दशपर्णी अर्क बनाना, अग्नि अस्त्र बनाना, सोंठास्त्र बनाना, नीमास्त्र बनाना एवं रोग नियंत्रण के लिए कण्डे पानी का उपयोग एवं खट्टी छाछ की उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया। फार्म मैनेजर महेन्द्र चैधरी ने किसानों को केन्द्र पर स्थित प्राकृतिक खेती खण्ड में गेहूं की फसल का विजिट करवाया तथा वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता दीपक कुमार ने किसानों को केंद्र पर स्थापित प्राकृतिक खेती प्रदर्शन इकाई का भ्रमण कराया।