होली 08 मार्च बुधवार को मनाई जाएगी और मंगलवार को होलिका दहन होगा। होली के समय बाजार सूना हो जाता है और गुलाल लगाए घर-घर से गुजिया की महक आने लगती है और हर चेहरा रंग से सराबोर हो जाता है। होलिका दहन और होली की धार्मिक कथा विष्णु भक्त प्रह्लाद, होलिका, राजा हिरण्यकश्यप, राधा-कृष्ण, भगवान शिव और भगवान राम से जुड़ी हुई है। वहीं, इसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है, जिसे होली के पर्व के रूप में समझना जरूरी है। जानिए होली के रंग और होलिका दहन का वैज्ञानिक महत्व और लाभ।
होलिका दहन गांव और कस्बों में ही नहीं बल्कि शहरों में हर गली, चौक और गली में जगमगाता है। होलिका दहन तब होता है जब सर्दियां बीत जाती हैं और गर्मियां आ जाती हैं। इस समय जलवायु में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, जिससे संक्रमण और बीमारी फैलाने वाले कई तरह के बैक्टीरिया जन्म लेते हैं। होलिका दहन की आग से वातावरण में मौजूद कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, जिससे बीमारी होने की संभावना भी कम हो जाती है।
वहीं होलिका दहन के दौरान होलिका दहन से बचना जरूरी है। ऐसे में परिक्रमा के दौरान तापमान 50 डिग्री से ज्यादा हो जाता है और गर्मी के कारण शरीर गर्म हो जाता है। यह गर्मी शरीर में बैक्टीरिया और वायरस को भी नष्ट कर देती है। होली से पहले लोग अपने घरों की साफ-सफाई भी करते हैं और घर की साफ-सफाई से घर में मौजूद बैक्टीरिया और धूल-मिट्टी भी दूर हो जाती है। हिंदू धर्म में विशेष त्योहारों पर कोने-कोने की सफाई करने का महत्व होता है. आम दिनों की सफाई केवल झाड़ू-पोंछे से ये गंदगी साफ नहीं हो पाती है.
वैसे तो लोग होली में कई तरह के रंगों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ये केमिकल से भरे होते हैं और शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। लेकिन पलाश, जैसन, गेंदा, चुकंदर आदि से बनी होली में हमेशा हर्बल या प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करें। ऐसे रंगों से होली मनाने से शरीर मजबूत होता है और त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता। क्योंकि प्राकृतिक रंग आलस्य को दूर भगाने में मदद करते हैं।
इसलिए होली का उत्सव मनाया जाता है और अच्छे से मनाया जाता है। क्योंकि होली मनाने के पीछे सिर्फ अंधविश्वास ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक फायदे भी हैं।