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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का फैसला : जलदाय विभाग के दोषी कार्मिकों को चुकाने होंगे हर्जाने के 25 हजार रुपए

झुंझुनू 19 मई।

संवाददाता दिनेश जाखड़

60 दिवस में अधीक्षण अभियंता को पेश करनी होगी आदेश की पालना रिपोर्ट

पालना नहीं होने पर चुकाना होगा 6 फीसदी वार्षिक ब्याज

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अध्यक्ष एवं पीठासीन अधिकारी मनोज मील व सदस्या नीतू सैनी ने अपने एक फैसले में जलदाय विभाग पर परिवादी को मानसिक संताप पेटे 20 हजार रुपए एवं परिवाद व्यय के 5 हजार रुपए बतौर हर्जाने के चुकाने के आदेश दिए हैं। आयोग ने जलदाय विभाग के अधीक्षण अभियंता को निर्देशित करते हुए लिखा है कि चूंकि विभाग जनता के टैक्स से संचालित होता है, इसलिए राजकोष पर व्यय भार नहीं डालकर यह हर्जाना दोषी कार्मिकों से वसूला जाए। मामला झुंझुनूं शहर में रेल्वे स्टेशन के पास स्थित प्रतिष्ठान के संचालक शिवदत्तराम के पुत्र अशोक मांजू का है। प्रतिष्ठान का 32 वर्ष पुराना पेयजल कनेक्शन परिवादी के पिता के नाम से है। वर्ष 2016 में जून महीने में जल उपभोग का गत पठन व वर्तमान पठन शून्य दर्शाया गया एवं जल उपभोग को 16 हजार लीटर बताते हुए पुराने बकाया के साथ बिल भेजा गया, जिसे संशोधित करने और स्थाई सेवा शुल्क लेने की प्रार्थना परिवादी की ओर से जलदाय विभाग में की गई। जहां सुनवाई नहीं होने पर अशोक मांजू ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में परिवाद दायर किया। जिस पर दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए आयोग ने यह आदेश दिए हैं कि विवादित बिल में अंकित राशि शून्य की जाए एवं परिवादी से केवल स्थाई शुल्क लिया जावे। साथ ही जलदाय विभाग के अधिकारियों द्वारा संबंधित प्रकरण में बरती गई लापरवाही व आयोग के समक्ष लगातार 42 सुनवाई में अनुपस्थित रहने को न्यायिक अवज्ञा के साथ ही जलदाय विभाग के कार्य व्यवहार को अनुचित व सेवादोष मानते हुए जलदाय विभाग से परिवादी को हर्जाना दिलवाने के आदेश दिए गए हैं। अधीक्षण अभियंता को निर्देशित किया गया है कि आदेश की पालना रिपोर्ट 60 दिवस में आयोग में प्रस्तुत की जाए, पालना नहीं होने पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ हर्जाना राशि चुकानी होगी।

हालांकि फैसले में परिवादी के स्तर पर यह स्वतंत्रता दी गई है कि यदि परिवादी चाहे तो वह लोक अदालत की पवित्र भावना से हर्जाना राशि छोड़ सकता है, जिसकी लिखित सूचना आयोग को देनी होगी।

42 सुनवाई पर लगातार गैर हाजिर रहा जलदाय विभाग:

जिला आयोग में परिवाद दायर होने के बाद जलदाय विभाग की ओर से तत्कालीन सहायक अभियंता ने उपस्थित होकर जवाब प्रस्तुत करने के लिए समय चाहा। इसके बाद विभाग की ओर से लगातार 42 सुनवाई की तारीख पेशियों पर जलदाय विभाग का कोई भी अधिकारी या कर्मचारी उपस्थित नहीं हुआ। पीठासीन अधिकारी मनोज मील ने आयोग में लंबित पुराने प्रकरणों के निपटारे के दौरान इसे गंभीर माना। इसके बाद आयोग के द्वारा सुनवाई किए जाने पर जलदाय विभाग की ओर से अधिकारी आए एवं तत्कालीन जिला कलक्टर की ओर से प्रकरण में जलदाय विभाग का पक्ष रखने के लिए सरकारी अधिवक्ता नियुक्त किया गया। जिला आयोग के पीठासीन अधिकारी ने अपने आदेश मे लिखा है कि राजस्थान सरकार के द्वारा समय-समय पर आमजन के कल्याण एवं मानव जीवन के लिए आवश्यक पेयजल सेवा की महत्ता को देखते हुए और आमजन को पेयजल सुविधा अनवरत मिलती रहे, इसके लिए जल उपभोग विपत्र में जोड़े गए ब्याज, विलंब शूल्क, पेनल्टी इत्यादि में शत प्रतिशत छूट दिए जाने के शासकीय आदेश सक्षम स्तर से जारी किए जाते हैं। लेकिन जलदाय विभाग ने इस मामले में राजस्थान सरकार के इस महत्वपूर्ण आदेश के तहत परिवादी अशोक मांझू के प्रकरण को निपटाने का कोई प्रयास नहीं किया। लोक अदालत के माध्यम से अनेक अवसर मिलने पर भी विभाग के अधिकारियों ने प्रकरण के निस्तारण में कोई गंभीरता नहीं दिखाई एवं परिवादी को राजस्थान सरकार की ओर से दी जा रही छूट की कोई सूचना भी नहीं दी।

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