आज (15 मार्च) श्री शीतला अष्टमी का व्रत है। इस दिन माता शीतला की पूजा करने और बांसी खाने की परंपरा है। साथ ही शीतला अष्टमी के दिन देवी मां को बांसी भोग लगाने की भी परंपरा है। इसीलिए इसे स्थानीय भाषा में बासौदा, बूढा बासौदा या बसियौरा के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार आमतौर पर मालवा, निमाड़, राजस्थान और हरियाणा के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है।
शीतला अष्टमी के पहले वाली रात यानी सप्तती की रात मां के लिए हलवा और पूड़ी का भोग लगाया जाता है. आखिर शीतला अष्टमी पर माता शीतला को बासी भोजन का भोग क्यों लगाया जाता है? क्या है इसके पीछे की वजह? आइए जानते हैं
क्यों लगाते हैं बासी भोजन का भोग?
हिंदू धर्म में हर पूजा के दौरान आमतौर पर साफ और ताजा पका हुआ खाना परोसा जाता है। लेकिन शीतला अष्टमी के दौरान बासी भोजन परोसा जाता है। क्योंकि उनका कहना है कि माता शीतला को बासी खाना बहुत पसंद है। यही कारण है कि लोग प्रसाद और शीतला अष्टमी जैसे प्राचीन भोजन ग्रहण करते हैं। साथ ही अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन रात्रि में बने भोजन का ही प्रयोग करने का विधान है।
कैसे करें माता और शीतला अष्टमी की उपासना?
परिवार को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए, अपने व्यवसाय को अज्ञात जोखिमों से बचाने के लिए, देवी माँ की कृपा से जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, अपने किसी भी कार्य में लाभ और सफलता प्राप्त करने के लिए देवी शीतला की उपासना की जाती है।
यदि आप अपने परिवार की सुख-समृद्धि में वृद्धि करना चाहते हैं तो आज के दिन स्नान आदि करते समय शीतला मां का ध्यान करते हुए घर में ही एक कुर्सी पर बैठकर इस दिए गए मंत्र का जाप नौ और मंत्रमहोदधि का 108 बार करें। मंत्र इस प्रकार है, ‘ऊं ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः।’
यदि आप किसी बात को लेकर चिंतित हैं, आपका मन शांत नहीं है, तो मन की शांति के लिए आज आप एक छोटा-सा चांदी का टुकड़ा लें और माता शीतला के मंदिर जाकर देवी मां को भेंट करें। अगर उस चांदी के टुकड़े पर माता का चित्र भी बना हो तो और भी अच्छा है।