राजस्थान की राजनीति के मजबूत स्तंभ माने जाने वाले किरोड़ी लाल मीणा ने हाल ही में दौसा उपचुनाव में हार के बाद अपनी व्यथा सार्वजनिक की। 45 साल के लंबे राजनीतिक सफर में संघर्ष और सेवा को अपनी पहचान बनाने वाले मीणा ने अपनी हार के बाद दिल से जुड़ी बातों को साझा किया।
मीणा ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन का हर क्षण जनता के लिए संघर्ष में बिताया। विभिन्न आंदोलनों के दौरान पुलिस की लाठियों से घायल होकर भी वे जनहित के लिए लड़ते रहे। मीसा कानून के तहत जेल जाने से लेकर गरीबों, मजदूरों और किसानों की आवाज बनने तक, उन्होंने हर स्तर पर जनता का साथ निभाया। बावजूद इसके, उपचुनाव में उन्हें जनता का पूरा समर्थन नहीं मिल सका।
मीणा ने अपनी हार का जिम्मा भितरघातियों पर डाला और कहा कि जब उन्होंने जनता के बीच संघर्ष की गाथा रखी और वोटों की अपील की, तब भी कुछ लोग दिल नहीं पिघला सके। उनकी सबसे बड़ी पीड़ा यह रही कि उनके लक्ष्मण जैसे भाई, जिन्होंने जीवनभर उनका साथ दिया, उन्हें भी राजनीतिक वार का शिकार बनाया गया।
उन्होंने कहा कि पराजय ने उन्हें विचलित नहीं किया है, बल्कि एक नई सीख दी है। वे आगे भी गरीबों और कमजोर वर्गों की सेवा करते रहेंगे। हालांकि, उनका दिल इस बात से आहत है कि वे अपने भाई का ऋण चुकाने में असमर्थ रहे।
मीणा ने स्पष्ट कहा कि उनकी स्वाभिमानी प्रवृत्ति और चाटुकारिता से दूरी ने उनके राजनीतिक जीवन में कई मुश्किलें पैदा कीं। अंत में उन्होंने दर्द भरे शब्दों में कहा, “मुझे गैरों ने नहीं, अपनों ने मारा है।”
राजनीति में इतने वर्षों के अनुभव के बाद भी, मीणा का यह बयान बताता है कि संघर्ष और पीड़ा का अंत नहीं होता। उनकी यह स्वीकारोक्ति राजनीति के कड़वे सच को उजागर करती है।