आईएएस ट्रेनी पूजा खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका हाई कोर्ट ने खारिज की, कोटा सिस्टम का दुरुपयोग कर धोखाधड़ी का आरोप

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (NBT) – दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को पूर्व आईएएस ट्रेनी पूजा खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। खेडकर पर आरोप है कि उन्होंने ओबीसी और दिव्यांग कोटा का गलत लाभ उठाकर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2022 में सफलता हासिल की। अदालत ने इसे संवैधानिक और सामाजिक तंत्र के साथ धोखाधड़ी का गंभीर मामला बताया।

आरोप: आरक्षण का फर्जी लाभ उठाया

पूजा खेडकर पर आरोप है कि उन्होंने यूपीएससी परीक्षा के लिए गलत जानकारी देकर आरक्षण का लाभ लिया। ट्रायल कोर्ट ने पहले ही उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने सोमवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान इसे खारिज करते हुए कहा कि पूजा के काम वंचित वर्गों के लिए बनी योजनाओं का दुरुपयोग करते प्रतीत होते हैं।

जांच में मिलीं लग्जरी कारें और संपत्ति

जांच के दौरान यह पाया गया कि पूजा खेडकर के परिवार का आर्थिक स्तर काफी ऊंचा है। उनके पास कई लग्जरी कारें और संपत्तियां हैं। कोर्ट ने कहा कि यह संदेह पैदा होता है कि उनके परिवार ने फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने और कोटा सिस्टम का अनुचित लाभ उठाने में मदद की होगी।

‘सिस्टम और समाज को कमजोर करने का प्रयास’

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “याचिकाकर्ता द्वारा किए गए कार्य न केवल संवैधानिक संस्थानों को कमजोर करते हैं, बल्कि पूरे समाज के लिए विश्वासघात हैं।” अदालत ने इसे धोखाधड़ी का बड़ा उदाहरण बताते हुए कहा कि पूजा खेडकर के खिलाफ एक मजबूत मामला बनता है।

पूछताछ के लिए हिरासत जरूरी

कोर्ट ने इस मामले को निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन बताते हुए कहा कि पूरी साजिश का पर्दाफाश करने के लिए हिरासत में पूछताछ जरूरी है। अदालत ने कहा, “हर साल लाखों उम्मीदवार यूपीएससी परीक्षा में भाग लेते हैं। ऐसे में इस प्रकार का कदाचार निष्पक्षता के साथ गंभीर विश्वासघात है।”

अग्रिम जमानत याचिका खारिज

अगस्त में पूजा खेडकर को अंतरिम जमानत मिली थी, लेकिन अब हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला केवल एक व्यक्ति के दुराचार का नहीं, बल्कि कोटा सिस्टम के दुरुपयोग से समाज के कमजोर वर्गों को हानि पहुंचाने का है। यह मामला कोटा सिस्टम के प्रति ईमानदारी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक सख्त संदेश है। कोर्ट का यह फैसला वंचित वर्गों के लिए बनी योजनाओं के प्रति गंभीरता को रेखांकित करता है।

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