दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा का ‘कैश एट होम’ मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। अब देश के विभिन्न हाईकोर्ट्स की बार एसोसिएशनों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना से इस मामले में आपराधिक जांच शुरू करने की मांग की है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश को भी वापस लेने का आग्रह किया गया है।
मामले की शुरुआत कैसे हुई?
यह विवाद 14 मार्च 2025 को शुरू हुआ जब जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले के स्टोररूम में आग लगने की घटना सामने आई। बाद में खबर आई कि वहां से नकदी से भरी बोरियां बरामद की गई हैं। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब 21 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की।
बार एसोसिएशनों की मांगें
दिल्ली, इलाहाबाद, केरल, कर्नाटक और गुजरात हाईकोर्ट्स की बार एसोसिएशनों ने संयुक्त बयान जारी कर जस्टिस वर्मा के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की। बयान में कहा गया:
- जस्टिस वर्मा के न्यायिक और प्रशासनिक कार्य तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाएं।
- उनके खिलाफ आपराधिक कानूनों के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा किया गया स्थानांतरण रद्द किया जाए।
- इस मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच हो।
बार एसोसिएशन ने जताई पारदर्शिता की उम्मीद
संयुक्त बयान में यह भी कहा गया, “हम सीजेआई द्वारा पारदर्शिता अपनाने और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट सहित अन्य सामग्रियों को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के कदम की सराहना करते हैं।”
सबूत नष्ट होने की आशंका
बार एसोसिएशनों ने चिंता जताई कि 15 मार्च को जस्टिस वर्मा के आवास से कुछ सामग्री हटाई गई थी। अगर इस मामले में उसी समय आपराधिक जांच शुरू की जाती, तो संभवतः सबूतों को नष्ट होने से रोका जा सकता था। बयान में कहा गया, “इस तरह के अपराधों में अन्य लोगों की संलिप्तता हो सकती है, और एफआईआर दर्ज न करने से उनकी अभियोजन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की नाराजगी
इस घटनाक्रम से नाराज़ इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। उनका कहना है कि यह फैसला न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
क्या बोले जस्टिस वर्मा?
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इस पूरे मामले को अपने खिलाफ एक साजिश करार दिया है और नकदी के कब्जे से इनकार किया है।
निष्कर्ष
यह मामला अब केवल जस्टिस वर्मा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे न्यायपालिका की पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है। बार एसोसिएशनों का एकजुट होना और आपराधिक जांच की मांग इस विवाद को और गहरा बना सकता है। आने वाले दिनों में यह मामला और बड़ा रूप ले सकता है।

Author: manoj Gurjar
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