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नागौर में सियासी संग्राम: ज्योति मिर्धा बनाम गजेंद्र सिंह खींवसर, भाजपा में बढ़ती गुटबाज़ी उजागर

राजस्थान भाजपा की राजनीति एक बार फिर नागौर में गर्मा गई है। प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद डॉ. ज्योति मिर्धा और राज्य के चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। यह सियासी संग्राम तब शुरू हुआ जब भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा की मुख्यमंत्री को लिखी एक गोपनीय चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

हालांकि डॉ. ज्योति मिर्धा ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने चिट्ठी लीक होने की जिम्मेदारी पर स्पष्ट रूप से इशारा किया कि यह मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की ओर से हुआ है। उन्होंने कहा, “जब मैंने नाम नहीं लिया फिर भी मंत्रीजी और उनके सुपुत्र भड़क गए, तो समझा जा सकता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका है।”

उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, “धृतराष्ट्र की समस्या यह नहीं थी कि वो अंधे थे, समस्या यह थी कि वो पुत्र मोह में अंधे थे।” मिर्धा ने आगे कहा कि यह 2025 है, न कि किसी जागीरदारी का दौर। मंत्रालय किसी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि जनता की सेवा का माध्यम है।

इस बयान के बाद मंत्री खींवसर और उनके बेटे की तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं, जिससे विवाद और गहरा गया। मंत्री ने कहा कि यदि कोई आरोप है तो उसे सबूतों के साथ पेश किया जाए। वहीं डॉ. मिर्धा ने दावा किया कि उनके पास सारे सबूत मौजूद हैं, जिन्हें वह उचित समय पर सार्वजनिक करेंगी।

क्या है वायरल पत्र का मामला?
सारा विवाद उस चिट्ठी से शुरू हुआ जो भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा ने मुख्यमंत्री को लिखी थी। पत्र में उन्होंने प्रशासन पर विपक्षी नेताओं के पक्ष में काम करने और स्वयं की उपेक्षा का आरोप लगाया था। जब यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो पार्टी में हलचल मच गई। डॉ. मिर्धा ने इस पत्र लीक मामले को गंभीरता से उठाया और इसे पार्टी फोरम पर रखने का दावा किया। उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जनसेवा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

क्या कहती है यह खींचतान भाजपा की आंतरिक स्थिति पर?
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि राजस्थान भाजपा के भीतर गुटबाज़ी गहराती जा रही है। एक ओर जहां पार्टी नेतृत्व को इस विवाद को सुलझाने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष को भाजपा की अंतर्कलह पर हमलावर होने का मौका मिल गया है।

अब देखना यह है कि पार्टी इस विवाद को किस तरह सुलझाती है और क्या वाकई कोई कार्रवाई होती है या यह मुद्दा समय के साथ दबा दिया जाएगा। लेकिन इतना तय है कि नागौर की यह जंग केवल दो नेताओं की नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर चल रही सत्ता संघर्ष की एक झलक भर है।

manoj Gurjar
Author: manoj Gurjar

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