सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि दुबे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और सर्वोच्च न्यायालय के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि अदालत इस पर कोई विस्तृत सुनवाई नहीं करेगी, लेकिन एक संक्षिप्त आदेश पारित किया जाएगा जिसमें याचिका अस्वीकार करने के कारणों को दर्ज किया जाएगा। CJI ने कहा, “संस्था की गरिमा की रक्षा होनी चाहिए। यह इस तरह से नहीं चल सकता। हम कुछ कारण बताएंगे। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन एक संक्षिप्त आदेश देंगे।”
याचिका का आधार
याचिकाकर्ता अधिवक्ता विशाल तिवारी ने दावा किया कि सांसद दुबे की टिप्पणियां न केवल अपमानजनक थीं, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता और प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़े करती हैं। उन्होंने अदालत से स्वत: संज्ञान लेकर कड़ी कार्रवाई करने की अपील की थी। दुबे ने प्लेटफॉर्म X पर एक काव्यात्मक और भावनात्मक पोस्ट साझा की: “दिल के अरमां आंसुओं में बह गए।” उनकी इस पोस्ट को कुछ ने राहत की अभिव्यक्ति बताया, तो कुछ ने इसे न्यायपालिका पर व्यंग्य समझा। दुबे ने यह भी लिखा कि वह सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं और उनकी टिप्पणियों का मकसद कभी किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाना नहीं होता।
मामला कैसे बना सुर्खियां
पिछले कुछ समय में दुबे ने न्यायपालिका की भूमिका पर कई बयान दिए थे, विशेष रूप से पहलगाम आतंकी हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को लेकर। इन्हीं बयानों को आधार बनाकर यह याचिका दायर की गई थी। इस फैसले से जहां अदालत ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार और न्यायपालिका की गरिमा के बीच संतुलन साधने की कोशिश की, वहीं कई कानूनी विशेषज्ञों ने इसे एक “संयमित दृष्टिकोण” करार दिया। पूर्व उदाहरणों का हवाला देते हुए, तिवारी ने दिल्ली न्यायिक सेवा विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती की याद दिलाई, लेकिन कोर्ट ने दुबे के मामले को उससे अलग मानते हुए याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना।
