राजस्थान के अलवर जिले में रामनवमी के दिन मंदिर में गंगाजल से शुद्धिकरण के बाद उठे विवाद पर भाजपा से निलंबित नेता ज्ञानदेव आहूजा ने पार्टी को अपना जवाब भेज दिया है। अपने पत्र में आहूजा ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी है और आगे भी माफी मांगने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा, “मैंने कोई गलती नहीं की है, तो माफी का सवाल ही नहीं उठता। माफी मांगना मेरी संस्कृति में नहीं है।”
“राजनीतिक विरोध था, न कि जातीय पूर्वाग्रह”
ज्ञानदेव आहूजा ने अपने जवाब में जोर देकर कहा कि उनका विरोध दलित समुदाय से नहीं था, बल्कि कांग्रेस नेता टीकाराम जूली के राजनीतिक विरोध के चलते था। उन्होंने कहा, “मैंने कभी दलितों का अपमान नहीं किया है और न ही कर सकता हूं। मैं हमेशा दलित हितों के लिए काम करता आया हूं।”
गौरतलब है कि आहूजा अलवर से तीन बार विधायक रह चुके हैं और खुद को दलितों का समर्थक बताते हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर में गंगाजल से शुद्धिकरण की क्रिया केवल राजनीतिक विरोध का प्रतीक थी, न कि किसी जातीय या धार्मिक पूर्वाग्रह का।
भाजपा के लिए बढ़ी मुश्किलें
आहूजा के इस अड़ियल रुख से भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पार्टी पहले ही इस मुद्दे पर बैकफुट पर है। भाजपा के संगठन महामंत्री दामोदर अग्रवाल ने जानकारी दी कि आहूजा का जवाब प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ को भेज दिया गया है। अब इस पर अंतिम निर्णय पार्टी नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा।
क्या है पूरा विवाद?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब रामनवमी के दिन राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता टीकाराम जूली ने अलवर के एक मंदिर में दर्शन किए। उनके जाने के बाद भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा ने मंदिर में गंगाजल का छिड़काव कर शुद्धिकरण कराया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद भाजपा ने आहूजा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करते हुए तीन दिन में जवाब मांगा था।
कांग्रेस ने साधा निशाना
कांग्रेस ने इस पूरे मामले को दलित अपमान करार देते हुए राष्ट्रीय मंच पर जोर-शोर से उठाया है। अहमदाबाद में हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में राहुल गांधी ने आहूजा की इस हरकत को “मनुवादी सोच” बताते हुए भाजपा का असली चेहरा देश के सामने लाने की बात कही। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा दलितों के साथ भेदभाव करती है और यह घटना उसी मानसिकता का प्रमाण है।
