राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना क्षेत्र के पीलूपुरा गांव में रविवार को हुई गुर्जर महापंचायत के बाद, प्रशासन को यह उम्मीद थी कि हालात शांत रहेंगे। राज्य सरकार से प्रमुख मांगों पर सहमति के बाद जब आंदोलन की समाप्ति की घोषणा हुई, तब माहौल शांतिपूर्ण नजर आ रहा था। लेकिन इसी बीच अचानक कुछ युवा उग्र हो उठे और दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग की पटरियों की ओर कूच कर दिया। न केवल मथुरा-सवाईमाधोपुर पैसेंजर ट्रेन को रोका गया, बल्कि पटरियां उखाड़ने की कोशिश भी की गई। इससे दो घंटे तक रेल यातायात बाधित रहा।
महापंचायत में बनी थीं ये सहमतियां
महापंचायत में विजय बैंसला ने राज्य सरकार द्वारा भेजा गया प्रस्ताव पढ़कर सुनाया और संघर्ष समिति की ओर से उसमें सहमति जताई। जिन प्रमुख बिंदुओं पर सहमति बनी उनमें शामिल हैं:
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एमबीसी आरक्षण: 5% आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कैबिनेट प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाएगा।
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आंदोलन के मामलों का निस्तारण: 2023 के समझौते के तहत दर्ज मामलों को प्राथमिकता से निपटाने हेतु हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त होंगे।
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भर्तियों में विसंगतियां: रोस्टर प्रणाली की विसंगतियों को दूर करने के लिए 60 दिन में मंत्रीमंडलीय समिति समाधान देगी।
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अनुकंपा नियुक्ति: शहीद रूप नारायण गुर्जर के परिजन को शीघ्र सरकारी सेवा में नियुक्ति।
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योजनाओं की निगरानी: देवनारायण योजना सहित अन्य योजनाओं की मासिक समीक्षा में संघर्ष समिति के प्रतिनिधि को शामिल किया जाएगा।
फिर भी क्यों भड़के युवा?
महापंचायत की समाप्ति की घोषणा होते ही कुछ युवा माइक लेकर मंच पर आए और अपने असंतोष को सार्वजनिक किया। खासकर रीट भर्ती 2018 के शेष 372 पदों पर नियुक्ति को लेकर नाराजगी जताई गई। युवाओं ने कहा कि वे केवल आश्वासन से संतुष्ट नहीं हैं और जब तक नियुक्ति नहीं होती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
ट्रैक पर हंगामा और दो घंटे का जाम
इस आक्रोश के चलते प्रदर्शनकारी दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक की ओर बढ़े और पटरियां खोलने की कोशिश की। मथुरा-सवाईमाधोपुर पैसेंजर ट्रेन को रोका गया और ट्रेन पर पथराव भी हुआ। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए यूपी के मेरठ से विधायक अरुण प्रधान को बीच में आकर समझाइश देनी पड़ी। दो घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद आंदोलनकारी शांत हुए और ट्रैक खाली कराया गया।
प्रशासन अलर्ट, अगली रणनीति पर नजर
हालांकि महापंचायत में हुई सहमति को सरकार अपनी सफलता बता रही है, लेकिन युवाओं की नाराजगी यह संकेत दे रही है कि सिर्फ कागज़ी सहमति से आंदोलन का समापन संभव नहीं है। प्रशासन अब इस घटनाक्रम के बाद अगली रणनीति पर विचार कर रहा है ताकि भविष्य में इस तरह की स्थिति को टाला जा सके।
निष्कर्ष:
गुर्जर समाज की कई मांगों पर बनी सहमति के बावजूद, युवाओं की नाराजगी यह दिखाती है कि रोजगार से जुड़े मुद्दे और ठोस कार्रवाई के अभाव में धरातल पर असंतोष जिंदा है। यदि सरकार समय रहते इन मुद्दों पर कार्रवाई नहीं करती, तो आंदोलन फिर उग्र रूप ले सकता है।
