प्रयागराज: जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने बुधवार को चल रहे महाकुंभ मेले पर सवाल उठाते हुए इसे “सरकारी कुंभ” करार दिया। उन्होंने कहा कि असली महाकुंभ पूर्णिमा की रात को समाप्त हो चुका है और जो अब चल रहा है, वह परंपरागत रूप से मान्य कुंभ नहीं है।
“महाकुंभ पहले ही पूर्णिमा को समाप्त हो चुका था। जो अब हो रहा है, वह ‘सरकारी कुंभ’ है। असली कुंभ माघ माह में होता है, और माघ माह की पूर्णिमा बीत चुकी है। सभी ‘कल्पवासी’ जो कुंभ में आए थे, वे पूर्णिमा के बाद वापस लौट चुके हैं,” शंकराचार्य ने कहा।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार द्वारा आयोजित वर्तमान आयोजन पारंपरिक कुंभ मेले के आध्यात्मिक महत्व को नहीं रखता। उनके अनुसार, सच्चे भक्तों की उपस्थिति और आध्यात्मिक वातावरण ही कुंभ को पवित्र बनाता है, न कि सरकारी योजनाएं।
गौ-वध के खिलाफ 17 मार्च को आंदोलन
महाकुंभ पर अपनी टिप्पणियों के अलावा, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने गौ-वध के मुद्दे पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने घोषणा की कि 17 मार्च को एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा, जिसमें गौ-वध के खिलाफ आवाज उठाई जाएगी।
“हमने 17 मार्च को सभी को एकजुट होने का आह्वान किया है ताकि गौ-वध के मुद्दे पर चर्चा की जा सके। हमने सभी राजनीतिक दलों और सरकारों से आग्रह किया है कि वे स्पष्ट करें कि क्या वे गौ-वध रोकना चाहते हैं या इसे जारी रखना चाहते हैं। हमने उन्हें 17 मार्च तक का समय दिया है ताकि वे अपना निर्णय अंतिम रूप दे सकें,” शंकराचार्य ने कहा।
विवाद और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
शंकराचार्य के इस बयान के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों की प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। कुछ संत समाज और धार्मिक गुरुओं ने उनके बयान का समर्थन किया है, जबकि कुछ ने इसे अनावश्यक विवाद करार दिया है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि महाकुंभ के आयोजन की तारीखें और व्यवस्थाएँ परंपराओं और प्रशासनिक निर्णयों को ध्यान में रखकर तय की जाती हैं।
आगामी दिनों में शंकराचार्य के इस बयान पर और भी प्रतिक्रियाएँ आने की संभावना है। वहीं, गौ-वध के मुद्दे पर 17 मार्च को होने वाले आंदोलन पर भी सभी की नजरें टिकी हुई हैं।
