नई दिल्ली | 12 मार्च 2025 – Bharat vs India को लेकर एक बार फिर सियासी बहस तेज हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबाले ने देश के नाम को लेकर बयान दिया कि “जब हमारा नाम भारत है, तो इसे ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।” उनके इस बयान पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस सांसद के. सुरेश और सीपीआई सांसद पी. संतोष कुमार ने पलटवार किया है।
RSS नेता ने क्या कहा?
दत्तात्रेय होसबाले ने एक कार्यक्रम में कहा कि,
“हमारी संविधान की प्रस्तावना में ‘We the people of India’ लिखा है, लेकिन जब भारतीय भाषाओं में बात होती है तो ‘भारत’ कहा जाता है। फिर ‘Constitution of India’ और ‘Reserve Bank of India’ क्यों? इस असमानता को दूर किया जाना चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में हुए G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति भवन के निमंत्रण पत्र और गणतंत्र दिवस के आमंत्रण पत्र पर ‘भारत गणराज्य’ लिखा गया था, जो सही दिशा में एक कदम था।
‘ब्रिटिश शासन की छाप को हटाना जरूरी’ – RSS
होसबाले ने ब्रिटिश शासन का उल्लेख करते हुए कहा कि,
“अंग्रेजों ने हमें यह महसूस कराया कि वे हमसे श्रेष्ठ हैं, और इसी मानसिकता ने हमारी राष्ट्रीय चेतना को प्रभावित किया। अब समय आ गया है कि हम औपनिवेशिक प्रभाव से पूरी तरह बाहर आएं और अपने देश को केवल भारत कहें।”
उमर अब्दुल्ला का जवाब – ‘चाहे जो कहो, कोई फर्क नहीं पड़ता’
RSS नेता के इस बयान पर जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा,
“हम अपने देश को भारत, इंडिया और हिंदुस्तान कहते हैं। कोई भी जिस नाम से बोलना चाहता है, वह बोल सकता है।”
कांग्रेस और CPI ने भी किया विरोध
कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने कहा कि,
“RSS को सिर्फ ‘भारत’ पसंद है, लेकिन देश के लोगों को संघ की यह नीति स्वीकार नहीं है।”
CPI सांसद पी. संतोष कुमार ने तंज कसते हुए कहा कि,
“RSS अपने नाम से अंग्रेजी के अक्षर क्यों नहीं हटा देता? यह मुद्दा सिर्फ एक विचारधारा विशेष को थोपने की कोशिश है।”
पहले भी उठा है यह मुद्दा
यह पहली बार नहीं है जब संघ परिवार ने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ कहने की वकालत की है। सितंबर 2023 में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने भी इसी विचार को दोहराया था और कहा था कि हमें अपने देश को भारत कहने की आदत डालनी चाहिए।
राजनीति गर्म, जनता की क्या राय?
इस विवाद के बाद सोशल मीडिया पर #BharatVsIndia ट्रेंड कर रहा है। कुछ लोग RSS के समर्थन में हैं, तो कुछ का कहना है कि नाम से ज्यादा जरूरी देश की तरक्की है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बहस आगे क्या मोड़ लेती है और क्या सरकार इस पर कोई आधिकारिक कदम उठाएगी।
