राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा कक्षा 12वीं के छात्रों के लिए प्रकाशित इतिहास की पुस्तक ‘आजादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ इन दिनों राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गई है। आरोप है कि इस किताब में गांधी-नेहरू परिवार और कांग्रेस नेताओं के योगदान का अधिक गुणगान किया गया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 11 वर्षों के कार्यकाल को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। इस सियासी विवाद के बीच बोर्ड के सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को एपीओ (Awaiting Posting Order) करते हुए उनका तबादला शिक्षा निदेशालय बीकानेर कर दिया गया है।
किताब पर क्यों उठा विवाद?
राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल द्वारा नए शैक्षणिक सत्र 2025 के लिए तैयार की गई इस पुस्तक में, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल और योगदान को विस्तार से दर्शाया गया है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों, योजनाओं और वैश्विक नेतृत्व का कोई उल्लेख नहीं है। इस असंतुलन को लेकर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कड़ा ऐतराज जताया।उन्होंने कहा, “बच्चों को गलत जानकारी या वैचारिक जहर नहीं पढ़ाया जाएगा, भले ही इसके लिए लाखों की किताबें रद्द करनी पड़ें।” राज्य सरकार ने इस पुस्तक की 4.90 लाख प्रतियां छपवाकर 19,700 स्कूलों में भेजने की योजना बनाई थी, जिनमें से करीब 80% किताबें पहले ही स्कूलों में पहुंच चुकी थीं। अब सरकार ने इन पुस्तकों का वितरण रोकने और वापस मंगवाने का आदेश दिया है।
दिनेश ओझा का तबादला, पहले भी हुए बदलाव
इस विवाद के बीच दिनेश कुमार ओझा, जो बोर्ड में डेपुटेशन पर कार्यरत थे, को शिक्षा निदेशालय, बीकानेर भेज दिया गया है। इससे पहले भी एकेडमिक डायरेक्टर राकेश स्वामी को डेढ़ महीने पहले एपीओ किया गया था। ओझा ने मीडिया से कहा, “यह पुस्तक सरकार की अनुमति से छपी थी, और इसमें कोई नई बात नहीं जोड़ी गई। मुझे हटाने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया।”
कांग्रेस का सरकार पर हमला
वहीं दूसरी तरफ इस पूरे घटनाक्रम पर कांग्रेस ने गहलोत सरकार के समय प्रकाशित किताब पर रोक को वैचारिक हमला करार दिया है। पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, “नेहरू, इंदिरा और राजीव जैसे नेताओं का इतिहास मिटाया नहीं जा सकता। क्या सरकार बच्चों से सच्चाई छिपाना चाहती है? यह इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास है।”
निष्कर्ष
यह विवाद राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक संघर्ष का संकेत दे रहा है। जहां एक ओर सरकार एकतरफा राजनीतिक दृष्टिकोण के खिलाफ सख्त रुख दिखा रही है, वहीं विपक्ष इसे इतिहास से छेड़छाड़ और वैचारिक सेंसरशिप बता रहा है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और गरमाने की पूरी संभावना है।

Author: manoj Gurjar
मनोज गुर्जर पिछले 5 वर्षों से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खेल, राजनीति और तकनीक जैसे विषयों पर विशेष रूप से लेखन करते आ रहे हैं। इन्होंने देश-दुनिया की बड़ी घटनाओं को गहराई से कवर किया है और पाठकों तक तथ्यात्मक, त्वरित और विश्वसनीय जानकारी पहुँचाने का काम किया है।