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“थनेला रोग से बचाव” विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन

झुंझुनू 26 अप्रैल

संवाददाता दिनेश जाखड़

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर, द्वारा संचालित पशु विज्ञान केन्द्र, झुंझुनू द्वारा शुक्रवार को “ थनेला रोग से बचाव ” विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन प्रभारी अधिकारी डॉ. प्रमोद कुमार के निर्देशन में किया गया। केन्द्र के डॉ. विनय कुमार द्वारा पशुपालकों को बताया कि इस रोग में कुछ पशुओं में सिर्फ दूध में पस या छिछड़े या खून आदि आता है तथा थन करीब-करीब सामान्य प्रतीत होता है, वहीं कुछ पशुओं में केवल थन में सूजन या कड़ापन पाया जाता है। दूध उत्पादन अचानक कम हो जाता है, दुहाई के समय गाय छटपटाने लगती है, थन में सूजन, थन सामान्य से अधिक लाल दिखाई पड़ता है, थन सामान्य से अधिक गर्म महसूस होता है, कड़ापन, दूध के साथ छोटा-छोटा थक्का निकलता है, कभी-कभी रक्त के छोटे-छोटे थक्के भी दिखाई पड़ते है, कभी-कभी थन से पानी जैसा पदार्थ निकलता है, अंततः दुध उत्पादन पूरी तरह बंद हो जाता है। कुछ असामान्य प्रकार के रोग में थन सड़कर गिर जाता है। ज्यादातर पशुओं में ताप या बुखार आदि नहीं होता। यदि थनैला रोग का समय पर उपचार न कराया जाए, तो थन की सामान्य सूजन बढ़कर सख्त हो जाती है और थन लकड़ी की तरह कठोर हो जाता है। इस अवस्था के उपरांत थानों से दूध आना स्थाई रूप से बंद हो जाता है। सामान्यतः शुरुआत में एक या दो थन प्रभावित होते हैं, जिससे कि बाद में अन्य थनों में भी रोग फैल सकता है। कुछ पशुओं में दूध का स्वाद बदल कर नमकीन जैसा हो जाता है। अलाक्षणिक या उपलाक्षणिक प्रकार के थनैला रोग में थन व दूध बिल्कुल सामान्य प्रतीत होते हैं। लेकिन प्रयोगशाला में दूध की जाँच द्वारा रोग का निदान किया जा सकता है।

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