नई दिल्ली: बजट सत्र की शुरुआत से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को मीडिया के सामने एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने इस बार के सत्र से पहले किसी भी विदेशी हस्तक्षेप के अभाव पर जोर दिया, जिसे राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा का विषय बनाया जा रहा है।
पीएम मोदी ने कहा, “2014 से हर सत्र से पहले शरारत करने के लिए लोग तैयार बैठे रहते थे, और यहां उन्हें हवा देने वालों की भी कोई कमी नहीं थी। लेकिन इस बार, पिछले 10 वर्षों में पहली बार, किसी भी विदेशी कोने से कोई चिंगारी नहीं उठी।” उनका यह बयान सीधे-सीधे उन घटनाओं की ओर इशारा करता है जो पहले के संसद सत्रों के दौरान देखी गई थीं—जैसे कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट, बीबीसी की गुजरात दंगों पर डॉक्यूमेंट्री, पेगासस रिपोर्ट आदि।
क्या है पीएम मोदी का इशारा?
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि जब से उनकी सरकार सत्ता में आई है, तब से हर बार संसद सत्र से ठीक पहले विदेशों से कोई रिपोर्ट या दस्तावेज़ लीक किए जाते रहे हैं, जो विपक्षी दलों के लिए सरकार को घेरने का हथियार बन जाते थे। उन्होंने इस ट्रेंड को “संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग” करार दिया।
भाजपा के नेता पहले भी जता चुके हैं चिंता
बीजेपी के कई नेता पहले भी संसद सत्र से पहले आने वाली विदेशी रिपोर्ट्स की टाइमिंग पर सवाल उठा चुके हैं। हाल ही में राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा था कि पिछले कुछ वर्षों में जब भी संसद सत्र शुरू होने वाला होता है, विदेशी रिपोर्ट्स सामने आ जाती हैं।
त्रिवेदी ने उदाहरण देते हुए कहा था:
- 3 फरवरी 2021: भारतीय किसानों पर एक रिपोर्ट आई, जबकि 29 जनवरी 2021 को बजट सत्र शुरू हुआ।
- 18 जुलाई 2021: पेगासस रिपोर्ट आई, जबकि 19 जुलाई 2021 को मॉनसून सत्र शुरू हुआ।
- 17 जनवरी 2023: बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज हुई, जबकि 24 जनवरी 2023 को बजट सत्र शुरू हुआ।
राजनीतिक हलकों में हलचल
पीएम मोदी के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। जहां भाजपा इसे ‘षड्यंत्रों से मुक्त’ बजट सत्र बता रही है, वहीं विपक्ष इसे मात्र एक ‘राजनीतिक बयान’ मान रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के बयान दे रही है।
क्या आगे भी यही ट्रेंड जारी रहेगा?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले सत्रों में क्या वाकई यह ट्रेंड टूटता है, या फिर संसद सत्रों से पहले विदेशी रिपोर्ट्स और दस्तावेज़ों का सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन फिलहाल, पीएम मोदी का यह बयान न केवल सत्ता पक्ष बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक नई बहस का मुद्दा बन चुका है।