दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 27 वर्षों के बाद सत्ता में वापसी करते हुए 70 में से 48 सीटों पर विजय प्राप्त की है। वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) को मात्र 22 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस परिणाम ने न केवल दिल्ली की राजनीति में बदलाव लाया है, बल्कि पड़ोसी राज्य पंजाब में भी राजनीतिक हलचल तेज कर दी है।
पंजाब कांग्रेस में नई उम्मीदें
दिल्ली में ‘आप’ की हार से पंजाब कांग्रेस में उत्साह का माहौल है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने कहा, “दिल्ली की जनता ने ‘आप’ की राजनीति को नकार दिया है, जो पंजाब के लिए एक संकेत है। हम ‘आप’ के फेल पंजाब मॉडल को टारगेट करेंगे।” कांग्रेस का मानना है कि यदि वह 2027 के विधानसभा चुनावों में मजबूती से लड़ी, तो सत्ता में वापसी संभव है।
‘आप’ के भीतर असंतोष और कांग्रेस की रणनीति
सूत्रों के अनुसार, पंजाब में ‘आप’ के लगभग 20 विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं। दिल्ली में सत्ता गंवाने के बाद, पार्टी नेतृत्व का पंजाब सरकार में हस्तक्षेप बढ़ सकता है, जिससे मुख्यमंत्री भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के बीच तनाव की संभावना है। कांग्रेस इस स्थिति का लाभ उठाकर ‘आप’ को घेरने की तैयारी में है।
गठबंधन न करने के फैसले पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया
दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा, “दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम स्पष्ट संकेत हैं कि अरविंद केजरीवाल की झूठ और धोखे की राजनीति को दिल्ली की जनता नकार चुकी है।” पंजाब कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि दिल्ली में ‘आप’ के साथ गठबंधन न करके उन्होंने सही निर्णय लिया, जिससे अब वे पंजाब में ‘आप’ को खुलकर चुनौती दे सकेंगे।
भाजपा की जीत और कांग्रेस की रणनीति
दिल्ली में भाजपा की जीत ने कांग्रेस को नई रणनीति बनाने के लिए प्रेरित किया है। पंजाब में अकाली दल की कमजोरी और भाजपा की सीमित उपस्थिति को देखते हुए, कांग्रेस को लगता है कि वह ‘आप’ को प्रभावी ढंग से चुनौती दे सकती है। कांग्रेस की योजना है कि वह ‘आप’ सरकार की नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाकर आगामी चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करे।
दिल्ली चुनाव के नतीजों ने पंजाब की राजनीति में नई संभावनाओं को जन्म दिया है। आने वाले समय में कांग्रेस और ‘आप’ के बीच मुकाबला और भी रोचक होने की उम्मीद है।
