भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स : बचपन से अंतरिक्ष तक का ऐसा रहा सफर

भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स लगभग 9 महीने बाद स्पेस स्टेशन से सकुशल पृथ्वी पर लौट आई हैं। 5 जून 2024 को वह साथी बैरी विलमोर के साथ बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट से आईएसएस पहुंची थीं। उनका आठ दिन लंबा मिशन 9 महीनों तक खिंच गया। इससे पहले भी वह दो बार अंतरिक्ष यात्रा कर चुकी हैं और कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं।

बचपन और भारतीय जुड़ाव
सुनीता विलियम्स का जन्म 19 सितंबर 1965 को अमेरिका के ओहायो में हुआ था। उनके पिता डॉ. दीपक पांड्या भारतीय मूल के हैं, जिनका जन्म गुजरात के मेहसाणा जिले के झूलासन गांव में हुआ था। उन्होंने अहमदाबाद से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में बसने का निर्णय लिया। उनकी माता उर्सुलिन बोनी स्लोवेनियाई मूल की हैं।

परिवार से मिली भारतीय संस्कृति की सीख
हिंदू भारतीय पिता और कैथोलिक मां की परवरिश में पली-बढ़ी सुनीता ने सभी धर्मों का सम्मान करना सीखा। उनके पिता हर रविवार को भगवद गीता का पाठ सुनाते थे और चर्च भी लेकर जाते थे। बचपन से ही रामायण और महाभारत की कहानियां सुनने से सुनीता का भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव हो गया। इसी कारण वह 2007 और 2013 में दो बार अपने पूर्वजों के गांव झूलासन की यात्रा कर चुकी हैं।

खेलकूद और शिक्षा
बचपन से ही सुनीता को खेलकूद में रुचि थी, खासकर तैराकी में। वह अपने भाई-बहनों के साथ घंटों तैराकी किया करती थीं और कई प्रतियोगिताओं में पदक जीते। शुरुआत में उन्होंने पशु चिकित्सक बनने का सपना देखा लेकिन पसंदीदा कॉलेज में सीट न मिलने के कारण वह इस क्षेत्र में नहीं जा सकीं।

अमेरिकी नौसेना में प्रवेश
अपने भाई के सुझाव पर सुनीता ने 1983 में अमेरिकी नौसेना अकादमी में दाखिला लिया और 1987 में भौतिक विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 1989 में प्रशिक्षु पायलट के रूप में नौसेना में शामिल हुईं। उन्होंने 30 से अधिक विमानों में 3000 से अधिक उड़ान घंटे पूरे किए। इसी दौरान उनकी मुलाकात माइकल विलियम्स से हुई और दोनों ने विवाह कर लिया।

अंतरिक्ष यात्री बनने की प्रेरणा
1993 में नौसेना परीक्षण पायलट स्कूल में प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जॉनसन स्पेस सेंटर जाने और प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्री जॉन यंग के साथ काम करने का मौका मिला। इससे प्रेरित होकर उन्होंने अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना देखा।

नासा में आवेदन करने पर पहली बार उन्हें अस्वीकृति मिली। लेकिन हार न मानते हुए उन्होंने 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री प्राप्त की और 1997 में पुनः आवेदन किया। इस बार नासा ने उन्हें स्वीकार किया और 1998 में वह प्रशिक्षु अंतरिक्ष यात्री बनीं। आठ वर्षों के प्रशिक्षण के बाद 9 दिसंबर 2006 को उन्होंने पहली बार अंतरिक्ष की यात्रा की।

अंतरिक्ष में भारतीय परंपराओं का पालन
सुनीता ने अपनी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान भारतीय संस्कृति से जुड़े कई प्रतीकों को अपने साथ रखा। उन्होंने पहली यात्रा में गीता और उपनिषदों को अपने साथ ले जाने के अलावा भारतीय व्यंजन समोसा भी ले गईं। उन्होंने यह अनुभव भारतीय छात्रों से साझा करते हुए बताया कि अंतरिक्ष यात्रा के दौरान वह काफी नर्वस थीं, लेकिन भारतीय संस्कृति से जुड़ी चीजों ने उन्हें आत्मबल दिया।

उपलब्धियां और योगदान
सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में सबसे अधिक समय तक स्पेस वॉक करने वाली महिला के रूप में कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं। उन्होंने 50 घंटे से अधिक समय तक स्पेस वॉक किया। इसके अलावा, वह पहली भारतीय मूल की महिला हैं जिन्होंने अंतरिक्ष में लंबी अवधि तक कार्य किया।

निष्कर्ष
सुनीता विलियम्स की कहानी यह दर्शाती है कि कठिनाइयों और असफलताओं के बावजूद यदि कोई अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे, तो वह सफलता अवश्य प्राप्त करता है। उनका भारतीय संस्कृति से गहरा जुड़ाव और अदम्य साहस उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनाता है।

 

manoj Gurjar
Author: manoj Gurjar

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