राजस्थान के जोधपुर शहर में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहां एक पीड़ित पिता को अपने नवजात शिशु के शव को दफनाने के लिए दो दिन तक जगह नहीं मिली। अंततः वह कफन और ज्ञापन लेकर जिला जनसुनवाई के दौरान कलक्टर के पास पहुंचा और दफनाने के लिए स्थाई जगह की मांग की।
पीड़ित विक्रम सांसी अपने नवजात शिशु के शव को लेकर दो दिनों तक भटकता रहा। अंत में बस्ती के लोगों ने मिलकर खोखरिया इलाके के पास सड़क किनारे शव को दफनाया, लेकिन यह अस्थाई और असम्मानजनक व्यवस्था ने विक्रम को झकझोर दिया। वह अपनी पीड़ा लेकर मारवाड़ इंटरनेशनल सेंटर में हो रही जनसुनवाई में पहुंचा और कलक्टर को ज्ञापन सौंपा।
श्मशान भूमि की कमी बनी समस्या
विक्रम ने बताया कि पहले नवजातों को बस्ती के पास एक खुले स्थान पर दफनाया जाता था, लेकिन उस स्थान पर अब रातानाडा थाना बन गया है। बाद में एयरपोर्ट के पास का स्थान इस्तेमाल किया गया, जो अब एयरपोर्ट विस्तार में शामिल हो गया है। ऐसे में शहर के गरीब और दलित समुदाय अपने मृत बच्चों को खुले स्थानों या सड़क किनारे दफनाने को मजबूर हैं।
कलक्टर को सौंपी मांग
विक्रम ने जिला प्रशासन से मांग की है कि बिजलीघर या पाबूपुरा क्षेत्र में स्थित किसी श्मशान भूमि का एक हिस्सा स्थाई रूप से नवजात बच्चों के दफन के लिए सुरक्षित किया जाए। कलक्टर ने इस पर संज्ञान लेते हुए नगर निगम को उपयुक्त स्थान चिन्हित करने के निर्देश दिए हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
कलक्टर ने कहा, “मुझे ज्ञापन प्राप्त हुआ है और नगर निगम को स्थान चिन्हित करने के लिए निर्देशित किया गया है। इस विषय पर जल्द निर्णय लिया जाएगा ताकि किसी अन्य पिता को अपने नवजात के साथ ऐसी पीड़ा न सहनी पड़े।”
यह घटना शहर में श्मशान भूमि के प्रबंधन और मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी पर गंभीर सवाल खड़े करती है। क्या आने वाले समय में प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर ठोस समाधान देगा, यह देखना बाकी है।
