30 अप्रैल 2025 — राजस्थान की सियासत इन दिनों पंचायतीराज संस्थाओं और नगरीय निकायों के पुनर्गठन एवं परिसीमन को लेकर गर्माई हुई है। इस मुद्दे पर राज्य की भाजपा सरकार और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भजनलाल शर्मा सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि इस पूरी प्रक्रिया में संवैधानिक नियमों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है।
गहलोत ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से कहा, “मैं ऐसा पहली बार देख रहा हूं कि सारे नियम-कानून तोड़े जा रहे हैं। राज्य सरकार मनमाने ढंग से पुनर्गठन कर रही है। जिला कलेक्टरों ने जनता की आपत्तियों को दर्ज करने के बजाय हाथ खड़े कर दिए हैं, क्योंकि उन्हें कहा गया है कि सारा कार्य राज्य स्तर से किया जा रहा है।”
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस मिलकर पंचायत और निकाय चुनावों में किसी भी कीमत पर जीत हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि “पहले उपचुनाव टाले गए, फिर वन नेशन-वन इलेक्शन की बात कहकर समय पर चुनाव नहीं कराए गए और अब नियमों की अनदेखी कर वोटबैंक साधने की कोशिश की जा रही है।”
गहलोत ने आरोप लगाया कि जनसंख्या के न्यूनतम और अधिकतम मानकों तथा मुख्यालय से दूरी के नियमों की अनदेखी की जा रही है। “कहीं दूर-दराज के गांवों को नगरीय निकायों में जोड़ा जा रहा है, तो कहीं पंचायत मुख्यालयों की दूरी असंगत रूप से बढ़ा दी गई है।” उन्होंने चेताया कि जनता में इस प्रक्रिया को लेकर आक्रोश है और कलेक्टरों को राजनीतिक दबाव के बजाय नियमों के अनुसार काम करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर, नगरीय विकास राज्य मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि “पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी तरह नियमानुसार और जनहित में की जा रही है।” उन्होंने विपक्ष के आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया।
विपक्ष का आरोप: वोटबैंक की राजनीति
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा इस पूरी प्रक्रिया को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। विपक्ष का आरोप है कि परिसीमन समिति पर सरकार का दबाव है और जनता की आपत्तियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों के मुख्यालयों को बदलने और पुनर्गठन के विरोध में प्रदर्शन भी हो रहे हैं। राज्य की सियासत में यह मुद्दा आने वाले निकाय और पंचायत चुनावों से पहले बड़ा राजनीतिक संकट बनता जा रहा है, जो सरकार की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर रहा है।
