“विधायिका फैसले नहीं लिख सकती, यह न्यायपालिका का कार्य है: उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायिक मर्यादाओं पर रखी स्पष्ट राय”

लखनऊ: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को लखनऊ स्थित डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह के दौरान राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की जीवनी ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन और सीमाओं के पालन की आवश्यकता पर बल दिया।

धनखड़ ने कहा, “मेरे मन में न्यायपालिका के प्रति अत्यंत सम्मान है। मैंने इस क्षेत्र में 40 वर्षों तक काम किया है और मैं गर्व से कह सकता हूं कि हमारे जज विश्व के सर्वश्रेष्ठ जजों में से हैं। लेकिन मैं अपील करता हूं कि संविधान की मर्यादा बनाए रखी जाए और हर संस्था अपने अधिकार क्षेत्र में कार्य करे।” उन्होंने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र का सुदृढ़ आधार तभी संभव है जब कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका परस्पर सम्मान और संतुलन बनाए रखें। “संविधान समन्वय, विचार-विमर्श, भागीदारी और संवाद की मांग करता है। संघर्ष से लोकतंत्र मजबूत नहीं होता, बल्कि भ्रम पैदा होता है।”

उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि जैसे विधायिका न्यायिक निर्णय नहीं दे सकती, उसी तरह न्यायपालिका को भी विधायी कार्यों से दूरी बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लोकतंत्र का अभिन्न अंग बताया, लेकिन चेताया कि जब कोई व्यक्ति खुद को ही पूर्ण रूप से सही माने और दूसरों को गलत, तो यह स्वतंत्रता विकृति बन जाती है। धनखड़ ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को संविधान में सर्वोच्च पद बताते हुए कहा कि “इन पदों पर टिप्पणी करना गहन सोच की मांग करता है। ये पद संविधान की गरिमा और अखंडता के प्रतीक हैं।”

इस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित रहे। उपराष्ट्रपति ने मंच से सीएम योगी की प्रशासनिक क्षमता की सराहना की और राज्य की प्रगति में उनके योगदान को उल्लेखनीय बताया।

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Author: manoj Gurjar

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