बिहार की सियासत में दशकों से एक अडिग समीकरण रहा है—‘माई समीकरण’, यानी मुस्लिम-यादव (M-Y) गठजोड़, जिसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की राजनीतिक ताकत का मूल आधार माना जाता है। लालू प्रसाद यादव के दौर से लेकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व तक, यही समीकरण RJD को राजनीतिक संजीवनी देता रहा है। लेकिन अब इस समीकरण पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सेंध लगाने की कवायद तेज कर दी है, जिससे RJD की रणनीतिक नींव हिलती दिख रही है।
2020 में AIMIM की दस्तक, अब विस्तार की तैयारी
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटें—अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बहादुरगंज और बायसी—पर जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था। मुस्लिम बहुल इन इलाकों में पार्टी का प्रभाव अप्रत्याशित रूप से बढ़ा और RJD को मुस्लिम वोटों के बंटवारे के कारण करारी हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि AIMIM का कुल वोट शेयर महज 1.24% था, लेकिन पार्टी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा, वहां वह निर्णायक भूमिका में रही। ओवैसी अब इस प्रभाव को सीमांचल के बाहर भी फैलाने की तैयारी में हैं, जिससे 2025 के विधानसभा चुनावों में RJD की राह मुश्किल होती दिख रही है।
RJD को 2020 में मुस्लिमों का मिला था समर्थन
2020 में RJD को करीब 75–80% मुस्लिम वोट मिले थे। लेकिन यह समर्थन मुख्यतः उन क्षेत्रों तक सीमित था जहां AIMIM की पकड़ कमजोर थी। वहीं, 2015 के चुनाव में जब RJD, JDU और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में थी, मुस्लिम वोटों का करीब 85% इस गठजोड़ को मिला था। अब जब JDU अलग है और AIMIM सक्रिय, समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं।
सीमांचल में RJD की चुनौती बढ़ी
AIMIM का सीमांचल पर बढ़ता प्रभाव RJD के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। सीमांचल की सीटों पर अगर मुस्लिम वोटों का विभाजन जारी रहा, तो RJD न सिर्फ इन सीटों पर कमजोर होगी, बल्कि इसका असर पूरे राज्य में उसकी सत्ता तक पहुंचने की संभावना पर पड़ सकता है।
क्या तेजस्वी का सपना सपना ही रह जाएगा?
तेजस्वी यादव ने खुद को बिहार की विपक्षी राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा स्थापित किया है। लेकिन यदि AIMIM मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करती रही, तो यादव वोटों के पहले से बंटे होने और दलित वोटों पर JDU के प्रभाव को देखते हुए, तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने का सपना एक बार फिर अधूरा रह सकता है।
निष्कर्ष
बिहार में AIMIM की बढ़ती सक्रियता और ओवैसी की रणनीति ने M-Y समीकरण में हलचल पैदा कर दी है। RJD को यदि 2025 में सत्ता तक पहुंचना है, तो उसे मुस्लिम वोटों को एकजुट बनाए रखने के लिए न सिर्फ कड़ी रणनीति बनानी होगी, बल्कि सीमांचल में AIMIM को कड़ी टक्कर भी देनी होगी। नहीं तो बिहार की राजनीति में एक बार फिर समीकरण बदलते नजर आ सकते हैं।
