जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले और इसके बाद वायुसेना की एयर स्ट्राइक से देशभर में जहां गुस्से की लहर है, वहीं राजस्थान के सरहदी जिलों बाड़मेर और जैसलमेर में भी हालात तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। चौहटन क्षेत्र के गांवों में 1971 की जंग की यादें फिर ताज़ा हो गई हैं, जब गांव के लोग सेना के साथ मिलकर मोर्चे पर जा पहुंचे थे—कुछ अपने ऊंटों के साथ, तो कुछ खुद कंधे पर राशन और हथियार लेकर।
युद्ध जैसे हालात में एक बार फिर जज्बा बुलंद
चौहटन के लादूराम ढाका याद करते हैं, “हम तीस के करीब लोग अपने ऊंटों के साथ सेना को रसद, पानी और गोला-बारूद पहुंचाते थे। हम 85 किलोमीटर भीतर तक नाला धोला परछे की बेरी पहुंचे थे।” वहीं, लादूराम जाणी बताते हैं, “4 दिसंबर 1971 को बमबारी के बाद जिला कलक्टर के कहने पर हमने सेना का साथ पकड़ा और 13 महीने तक कैंप में डटे रहे।”
आज जब सीमाओं पर तनाव की स्थिति बनी हुई है, चौहटन के ग्रामीणों का वही हौंसला फिर से लौटता दिख रहा है। वे मानते हैं कि चाहे आधुनिक युद्ध फाइटर जेट और मिसाइलों का हो, लेकिन ज़मीन पर स्थानीय सहयोग की अहमियत आज भी उतनी ही है।
‘अगर जरूरत पड़ी, तो हम भी जाएंगे सीमा पर’
नई पीढ़ी भी अपने बुजुर्गों के नक्शे कदम पर चलने को तैयार है। लादूराम ढाका के पोते भंवरलाल ढाका कहते हैं, “मेरे दादा सेना के साथ युद्ध में गए थे। अब अगर मौका मिला, तो मैं भी सीमा पर जाकर देश की सेवा करूंगा।” वहीं, मोबताराम जांगू के पोते पांचाराम जांगू का कहना है, “दादाजी का सपना था कि हम भी देश की रक्षा करें। अब समय है उस सपने को पूरा करने का।”
सीमावर्ती इलाकों में चौकसी बढ़ी
एयर स्ट्राइक और मॉक ड्रिल के बाद सरहदी गांवों में चौकसी और सतर्कता बढ़ा दी गई है। ग्रामीण भी अब अपने-अपने स्तर पर सहायता देने को तैयार हैं। तहसीलदार कार्यालय में कई युवाओं ने अपने नाम और नंबर जमा करवाए हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत बुलाया जा सके।
युद्ध नहीं, लेकिन जवाब ज़रूर चाहिए
स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान की ओर से बार-बार हो रही घुसपैठ, आतंकवाद और तस्करी अब बर्दाश्त से बाहर है। “अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए,” चौहटन के बुजुर्ग कहते हैं।
इस बीच, सीमाओं पर हलचल के साथ देशभक्ति का जोश भी चरम पर है। राजस्थान की रेत से एक बार फिर आवाज़ उठ रही है—अगर देश पुकारेगा, तो हम हाजिर होंगे।
