जयपुर में अवैध बांग्लादेशियों की धरपकड़ पर विवाद, पीयूसीएल अध्यक्ष ने पुलिस पर मदारियों को पकड़ने का लगाया आरोप

राजधानी जयपुर में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की धरपकड़ के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि “असली बांग्लादेशी नहीं, बल्कि मदारियों और घुमंतू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।”

सोमवार को बापू नगर स्थित विनोबा ज्ञान मंदिर में आयोजित एक प्रेसवार्ता में श्रीवास्तव ने बताया कि हाल ही में पुलिस ने जिन लोगों को पकड़ा है, वे राजस्थान के निवासी हैं और वर्षों से यहां जीवनयापन कर रहे हैं। इन परिवारों में सात पुरुष, तीन महिलाएं और पांच बच्चे शामिल हैं। PUCL के अनुसार, पकड़े गए लोग जादू और खेल दिखाकर गुज़ारा करते हैं और उनके पास भारतीय दस्तावेज जैसे आधार और वोटर कार्ड भी मौजूद हैं।

श्रीवास्तव ने कहा:

“पुलिस ने दस्तावेजों के बावजूद इन्हें बांग्लादेशी बताकर हिरासत में ले लिया है। यह गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है। इन परिवारों के सदस्य अब अपने प्रियजनों को छुड़ाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।”

पुलिस का पक्ष

वहीं पुलिस प्रशासन ने PUCL के आरोपों को नकारते हुए कहा है कि संदिग्धों को पूरी तस्दीक (वेरिफिकेशन) के बाद ही हिरासत में लिया गया है। जयपुर पुलिस कमिश्नर बीजू जॉर्ज जोसफ ने बयान में कहा:

“जिन्हें हिरासत में लिया गया है, उनके पास न तो पासपोर्ट हैं और न ही भारतीय वोटर कार्ड। जांच में यह भी सामने आया है कि इन लोगों का बांग्लादेश में रहने वाले परिजनों से संपर्क है और यहां से वे वहां पैसे भी ट्रांसफर कर रहे थे। हमने केन्द्र सरकार की गाइडलाइन्स के तहत कार्रवाई की है।”

सवालों के घेरे में प्रशासन

इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासन और मानवाधिकार संगठनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर दी है। एक ओर पुलिस इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बता रही है, वहीं PUCL जैसे संगठन इसे प्रवासी घुमंतू समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह और गलत पहचान का परिणाम मान रहे हैं।

क्या कहती है जनता?
स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में अवैध प्रवासियों की पहचान एक बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन इसके नाम पर बेगुनाह लोगों को पकड़ना चिंताजनक है।

निष्कर्ष

अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और कार्रवाई को लेकर जयपुर पुलिस और मानवाधिकार संगठनों के बीच जारी खींचतान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक प्रक्रिया और मानवीय अधिकारों के बीच संतुलन बनाना अब और भी जरूरी हो गया है।

manoj Gurjar
Author: manoj Gurjar

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