गुजरात के सुरेन्द्रनगर जिले में वर्ष 2021 में हुए कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में नया मोड़ आया है। मृतक हनीफखान जातमालिक की पत्नी हनीफाबेन और बेटी सुहाना ने गुरुवार को बाजणा पुलिस स्टेशन में सात पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है। यह मामला एक 17 वर्षीय बच्ची की तीन साल लंबी न्यायिक लड़ाई के बाद सामने आया है, जिसमें अब आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 114 (सहयोगी की उपस्थिति) के तहत कार्रवाई शुरू हुई है।
एफआईआर में शामिल पुलिसकर्मी:
एफआईआर में पुलिस सब-इंस्पेक्टर वीरेंद्रसिंह जाडेजा सहित हेड कांस्टेबल राजेशभाई मिथापारा, किरीट सोलंकी, कांस्टेबल शैलेशभाई कठेवड़िया, दिग्विजयसिंह ज़ाला, प्रहलादभाई चारमता और मनुभाई फतेपरा को आरोपी बनाया गया है।
क्या है मामला?
हनीफाबेन के अनुसार, 6 नवंबर 2021 को बाजणा पुलिस के कुछ सादे कपड़ों में आए पुलिसकर्मियों ने गेडिया गांव में उनके घर पर धावा बोला। उन्होंने हनीफखान को जबरन कार में बैठाया। जब उनका 14 वर्षीय पोता मदीन उन्हें बचाने दौड़ा, तो सब-इंस्पेक्टर जाडेजा ने रिवॉल्वर निकालकर उसे सीने में गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। बाद में हनीफखान की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
सुहाना की न्याय के लिए जद्दोजहद
सुहाना ने 2022 में गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 26 जुलाई 2024 को मुख्य न्यायाधीश सुनिता अग्रवाल और न्यायमूर्ति प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करने की स्वतंत्रता है।
इसके बाद 17 अप्रैल 2025 को सुहाना ने धरगधरा पटदी की JMFC अदालत में आवेदन दिया। न्यायाधीश आर.आर. ज़िंबा ने आदेश दिया कि सातों पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच की जाए और रिपोर्ट अदालत को सौंपी जाए।
सुहाना का बयान
सुहाना ने कहा, “तीन साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आज हमें कुछ संतोष मिला है। मेरे पिता और भाई की हत्या करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ आखिरकार केस दर्ज हुआ है। लेकिन जब तक इन्हें कड़ी सजा नहीं मिलती, तब तक न्याय अधूरा है। मैं चाहती हूं कि कोई और बच्चा या परिवार ऐसा दुख न सहे।”
न्यायिक जांच का आदेश
बाजणा पुलिस को जांच का जिम्मा सौंपा गया है, जो उप पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में की जाएगी। अदालत ने निष्पक्ष और सख्त जांच की बात दोहराई है।
निष्कर्ष
यह मामला एक नाबालिग लड़की की हिम्मत, दृढ़ संकल्प और न्याय की तलाश की मिसाल बन गया है। सुहाना की लड़ाई ने न केवल पुलिस के एक कथित फर्जी एनकाउंटर को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था में आम नागरिक के भरोसे की ताकत भी दर्शाई है।
