भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सीजफायर को लेकर देश की सियासत गरमा गई है। अमरीका की कथित मध्यस्थता पर कांग्रेस ने तीखा हमला बोला है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल करते हुए इसे भारत की परंपरागत विदेश नीति से विपरीत बताया है। गहलोत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा, “पूर्व में भारत कभी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं झुका, इसलिए यह समझ से परे है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने सीजफायर की घोषणा कैसे कर दी। यह निर्णय पूरी तरह भारत सरकार का होना चाहिए था।”
नेहरू और इंदिरा के फैसलों की याद
गहलोत ने अपने बचपन और छात्र जीवन के दो ऐतिहासिक घटनाओं को याद करते हुए मौजूदा सरकार की तुलना नेहरू और इंदिरा गांधी की नीतियों से की। उन्होंने कहा कि 1961 में गोवा को पुर्तगाल से मुक्त कराने के दौरान, जब वे कक्षा 6 में थे, तब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने पंडित नेहरू पर दबाव बनाया था। बावजूद इसके, भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत गोवा को भारत में मिला लिया। इसी तरह 1974 में सिक्किम के भारत में विलय को लेकर इंदिरा गांधी की सरकार ने अमेरिकी विरोध और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए फैसला लिया था। “सिक्किम की महारानी अमेरिकी थीं और अमेरिका ने दबाव बनाया था, लेकिन इंदिरा गांधी ने भारत के हितों को सर्वोपरि रखा,” गहलोत ने कहा।
‘क्या मजबूरी थी जो अमरीका को दखल देने दिया?’
पूर्व मुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि हाल ही में हुए सैन्य तनाव के बाद केंद्र सरकार ने ऐसी कौन-सी मजबूरी में तीसरे देश को हस्तक्षेप की अनुमति दी। “इंदिरा गांधी के समय से भारत की स्पष्ट नीति रही है कि भारत-पाक विवाद में किसी तीसरे पक्ष का कोई स्थान नहीं होगा। फिर आज यह नीति क्यों बदली गई?” उन्होंने केंद्र सरकार से जवाब मांगा।
जनभावनाओं में बेचैनी
गहलोत ने कहा कि अमरीका की भूमिका से आम जनता चिंतित है। उन्होंने कहा, “यह सवाल हर देशवासी के मन में है कि आखिर हमारे राष्ट्रीय निर्णयों में विदेशी राष्ट्रपति का क्या काम?”
पृष्ठभूमि में जारी है तनाव
भारत-पाक सीमा पर जारी तनाव के बीच यह बयान ऐसे समय आया है जब जैसलमेर, पोकरण सहित राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में हाई अलर्ट जारी है। सोशल मीडिया पर तनोट माता मंदिर की भी चर्चा तेज़ हो गई है, जिसे भारत-पाक युद्धों में आस्था और प्रेरणा का प्रतीक माना जाता है।
