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जयपुर: डोटासरा के आरोपों के बाद विधानसभा में सियासी तूफ़ान, भाजपा ने किया पलटवार

photo source patrika

जयपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा द्वारा विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर लगाए गए गंभीर आरोपों ने राजस्थान की राजनीति में तीखी बहस छेड़ दी है। डोटासरा ने कहा कि विधानसभा में लगे दो हिडन कैमरों और उनसे जुड़े एक्सेस के जरिए स्पीकर अपने रेस्ट रूम से विपक्ष, खासकर कांग्रेस की महिला विधायकों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। उनके मुताबिक कैमरों से यह देखा जा रहा है कि महिलाएँ किस दिशा में बैठती हैं, किस अवस्था में हैं और वे क्या बातें कर रही हैं। डोटासरा ने इस व्यवहार को निजता के उल्लंघन और संवैधानिक मर्यादा के खिलाफ बताया और कहा कि इस पर महिला विधायक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात रखेंगी।

डोटासरा के बयान के तुरंत बाद सत्तापक्ष ने भी तीखा रुख अपनाया। उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने इस बयान को “शर्मनाक” करार देते हुए कहा कि इस तरह की भाषा और आरोप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हैं। दिया कुमारी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की ओर से पहले भी महिलाओं का अपमान हुआ है और अब फिर उसी विकृत सोच की झलक दिख रही है। उन्होंने कहा कि जिन वरिष्ठ नेताओं ने अपना जीवन राजनीति और समाज सेवा को समर्पित किया है, उनपर ऐसे आरोप लगाना बेदिमागी और अनावश्यक है।

नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन राज्य मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने डोटासरा पर तीखा हमला करते हुए कहा कि वे “इतने कुंठित” हो गए हैं कि उन्हें उचित और अनुचित का भान नहीं रहा। खर्रा ने यह भी याद दिलाया कि डोटासरा ने पहले भी ऐसी टिप्पणी की थी, जिससे वे पहले ही शर्मसार हो चुके हैं। गृह राज्यमंत्री जवाहर सिंह बेढम ने कहा कि विधानसभा से जुड़े मामलों का निर्णय सदन की कार्यवाही के दायरे में आता है और स्पीकर का पद संवैधानिक है; ऐसे आरोपों से पहले तथ्य स्पष्ट किए जाने चाहिए।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अन्य कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए तत्काल उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। गहलोत ने कहा कि यदि सदन में अतिरिक्त कैमरे लगाए गए हैं और उनका एक्सेस अनुचित तरीके से रखा गया है तो यह संवैधानिक मर्यादा और निजता का उल्लंघन है और इसकी जांच होनी चाहिए। विपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पहले भी सदन में कैमरों के अतिरिक्त नियंत्रण और उनके चालू रहने के सवाल उठाए थे तथा राज्यपाल को भी इस बारे में शिकायत की थी।

राज्य विधानसभा की कार्यप्रणाली और कैमरा निगरानी व्यवस्था पर उठ रहे सवालों ने प्रशासनिक और कानूनी मुद्दे भी खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वीडियो निगरानी सदन की सुरक्षा और रिकार्डिंग के लिए है तो उसके संचालन, एक्सेस और रिकॉर्डिंग की स्पष्ट नीति होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का व्यक्तिगत उपयोग संभव न हो। कानूनविद भी बताते हैं कि बिना कानूनी आधार या पारदर्शी प्रक्रिया के किसी की निगरानी करना निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है और कानून के तहत इसकी जाँच का प्रावधान मौजूद है।

राजनीतिक समीकरण की दृष्टि से यह विवाद विधानसभा चुनाव से पहले सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी जुबानी जंग को और तेज करेगा। कांग्रेस इस मामले को लेकर ‘वोट चोरी’ अभियान के तहत राजनीतिक मुद्दों में शामिल कर सकती है, जबकि भाजपा इसे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और सियासी सांठगांठ करार दे सकती है।

अब राज्य सरकार या विधानसभा सचिवालय की ओर से इस मामले पर क्या कार्रवाई होती है, यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा। यदि दोनों पक्ष जांच की मांग करते हैं तो संभव है कि विधानसभा अध्यक्ष खुद इस आरोप का खंडन करें या समिति स्तर पर तथ्य-खोज के आदेश दिए जाएँ। फिलहाल राजनीतिक दलों के बयान तीखे बने हुए हैं और इस विवाद ने राज्य की सियासत में नया मोड़ ला दिया है।

manoj Gurjar
Author: manoj Gurjar

मनोज गुर्जर पिछले 5 वर्षों से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खेल, राजनीति और तकनीक जैसे विषयों पर विशेष रूप से लेखन करते आ रहे हैं। इन्होंने देश-दुनिया की बड़ी घटनाओं को गहराई से कवर किया है और पाठकों तक तथ्यात्मक, त्वरित और विश्वसनीय जानकारी पहुँचाने का काम किया है।

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