राजस्थान में बिजली उपभोग की निगरानी और पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई स्मार्ट मीटर योजना अब सरकार के लिए संकट का कारण बनती जा रही है। सरकार जहां इसे आधुनिक तकनीक से लैस उपभोक्ता हितैषी योजना बता रही है, वहीं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बिजली उपभोक्ता, किसान संगठन और विपक्षी दल इस पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं।
स्मार्ट मीटर: सुविधा या साजिश?
प्रीपेड स्मार्ट मीटर योजना के तहत राज्य में करीब 14 हजार करोड़ रुपये की लागत से 1.43 करोड़ मीटर लगाए जाने थे। अब तक मात्र 2.87 लाख मीटर ही लग पाए हैं। योजना के पीछे तर्क है – बिजली चोरी पर रोक, पारदर्शी बिलिंग और उपभोक्ता को खपत पर नियंत्रण। लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट नजर आ रही है। कई जिलों में उपभोक्ताओं के बिजली बिल अचानक 10 से 30% तक बढ़ गए हैं। जोधपुर, सीकर, झुंझुनूं, चूरू, नागौर और जयपुर जैसे जिलों में विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। कुछ मामलों में तो बिजली बिल लाखों रुपये तक पहुंच गए – जो सामान्य घरेलू खपत से मेल नहीं खाते।
मंत्री बोले: “जनता के लिए वरदान है स्मार्ट मीटर”
ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने इस योजना का जोरदार बचाव किया है। उन्होंने कहा कि स्मार्ट मीटर से मजदूर, गरीब और दिहाड़ी कामगारों को सबसे अधिक लाभ मिलेगा। वे अपनी जरूरत और बजट के अनुसार रिचार्ज कर बिजली का उपयोग कर सकेंगे। मंत्री ने दावा किया कि यह योजना पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई थी, और वर्तमान सरकार ने केवल इसे आगे बढ़ाया है। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को “राजनीतिक फायदे के लिए किया गया अनुचित विरोध” बताया।
विपक्ष का पलटवार: “यह स्मार्ट भ्रष्टाचार है”
विपक्ष ने इस योजना को “स्मार्ट भ्रष्टाचार” बताया है। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने आरोप लगाया कि पुराने मीटर पूरी तरह से कार्यरत थे, लेकिन निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं। आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल ने इसे बिजली कंपनियों की मनमानी करार दिया और कहा कि इससे आम जनता को करोड़ों का नुकसान हो रहा है।
तकनीकी खामियां और सिस्टम फेल?
ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क और तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी के कारण स्मार्ट मीटर ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। उपभोक्ताओं को बिना चेतावनी के बिजली कटौती, गलत बिल और रीचार्ज के बाद भी कनेक्शन चालू न होने जैसी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। डिस्कॉम प्रबंधन ने चेतावनी दी है कि अगर तीन महीनों में प्रदर्शन नहीं सुधरा तो टेंडर रद्द कर दिया जाएगा। इससे केंद्र सरकार की सब्सिडी अटकने की भी आशंका जताई जा रही है।
स्मार्ट मीटर: कैसे काम करता है ये सिस्टम?
स्मार्ट मीटर एक डिजिटल और प्रीपेड प्रणाली है, जो रियल टाइम में उपभोक्ता की खपत मापती है। उपभोक्ता मोबाइल ऐप या पोर्टल से अपनी खपत और बैलेंस देख सकता है। यदि रीचार्ज समाप्त हो जाए तो कनेक्शन कट जाता है, लेकिन भुगतान के 30 मिनट के भीतर स्वतः चालू हो जाता है।
बता दें कि, राजस्थान अकेला राज्य नहीं है जहां स्मार्ट मीटरों के खिलाफ नाराजगी है। बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में भी इस योजना के खिलाफ प्रदर्शन हो चुके हैं। बंगाल में तो विरोध के चलते योजना को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है।
स्मार्ट मीटर योजना की मंशा चाहे जितनी अच्छी हो, जब तक ज़मीनी तकनीकी समस्याएं, उपभोक्ता जागरूकता और पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक इसका विरोध थमने वाला नहीं है। सरकार और डिस्कॉम को संवाद, सुधार और समाधान की नीति अपनानी होगी वरना यह योजना सरकार की फजीहत का कारण बन सकती है।

Author: manoj Gurjar
मनोज गुर्जर पिछले 5 वर्षों से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खेल, राजनीति और तकनीक जैसे विषयों पर विशेष रूप से लेखन करते आ रहे हैं। इन्होंने देश-दुनिया की बड़ी घटनाओं को गहराई से कवर किया है और पाठकों तक तथ्यात्मक, त्वरित और विश्वसनीय जानकारी पहुँचाने का काम किया है।