कांग्रेस नेता और संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का आज का बिहार दौरा इस साल का पांचवां दौरा रहा। गया में माउंटेन मैन दशरथ मांझी के परिवार से मुलाकात और नालंदा में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में दलित प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए राहुल ने एक बार फिर साफ कर दिया कि पार्टी की नजर दलितों, अतिपिछड़ों और OBC वर्ग पर है।
राहुल की रणनीति: दलित-अतिपिछड़ा वोट बैंक साधना
राहुल गांधी लगातार बिहार आकर उस सामाजिक वर्ग को साधने की कोशिश में हैं जो पिछले तीन दशकों से कांग्रेस से दूर रहा है। नालंदा में उन्होंने जदयू के कोर वोट बैंक माने जाने वाले अतिपिछड़े वर्ग और छात्रों से संवाद किया। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि नीतीश कुमार की उम्र और सत्ता विरोधी माहौल का लाभ उठाकर वे इस वर्ग को अपने पाले में ला सकते हैं।
कांग्रेस संगठन में बदलाव का संकेत
हाल ही में पार्टी ने भूमिहार नेता अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित नेता राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इससे साफ है कि कांग्रेस जातीय समीकरणों को लेकर गंभीर है और जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावारू इस कवायद को आगे बढ़ा रहे हैं।
कन्हैया कुमार को युवा चेहरा बनाने की कोशिश
राहुल गांधी की मौजूदगी में कन्हैया कुमार को लेकर हुए आयोजनों से यह संकेत मिला कि पार्टी उन्हें बिहार में युवा चेहरा बनाना चाहती है। हालांकि इससे राजद के साथ टकराव के सुर भी सुनाई दिए। सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी यादव, कन्हैया की बढ़ती सक्रियता से सहज नहीं हैं।
पप्पू यादव का बयान: कांग्रेस लड़े अकेले चुनाव
पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने बड़ा बयान देते हुए कांग्रेस को बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की बातों में अब जनता को उम्मीद दिखती है – EBC, OBC, SC/ST और गरीबों की आवाज वे मुखरता से उठा रहे हैं। पप्पू ने भरोसा जताया कि अगर कांग्रेस आगे आती है तो वे साथ खड़े रहेंगे।
गौरतलब है कि पप्पू यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी (JAP) का कांग्रेस में विलय कर दिया था, लेकिन टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उनके कारण राजद उम्मीदवार तीसरे स्थान पर खिसक गईं।
1990 के बाद सत्ता से दूर कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस की राजनीतिक दुर्दशा 1990 के बाद शुरू हुई। मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद जातीय ध्रुवीकरण ने कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया। 1990 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी केवल 71 सीटें ही जीत पाई और तब से सत्ता से बाहर है। अब कांग्रेस इस लंबे सत्ता वनवास को तोड़ने की कोशिश में जुट गई है।
निष्कर्ष: क्या कांग्रेस फिर से खड़ी हो पाएगी?
राहुल गांधी की लगातार यात्राएं, संगठन में जातीय संतुलन और पप्पू यादव जैसे नेताओं का समर्थन एक संकेत हैं कि कांग्रेस बिहार में नई जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है। लेकिन क्या यह रणनीति तेजस्वी की अगुवाई वाले महागठबंधन में तनाव पैदा करेगी या कांग्रेस को स्वतंत्र विकल्प के रूप में उभारेगी — इसका फैसला आने वाले विधानसभा चुनावों में होगा।

Author: manoj Gurjar
मनोज गुर्जर पिछले 5 वर्षों से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खेल, राजनीति और तकनीक जैसे विषयों पर विशेष रूप से लेखन करते आ रहे हैं। इन्होंने देश-दुनिया की बड़ी घटनाओं को गहराई से कवर किया है और पाठकों तक तथ्यात्मक, त्वरित और विश्वसनीय जानकारी पहुँचाने का काम किया है।