वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को लेकर देश की राजनीति में घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुके इस विधेयक को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 4 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इन नेताओं का कहना है कि यह बिल संविधान के मूल ढांचे और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का ऐलान किया है।
सरकार का रुख स्पष्ट, विपक्ष हमलावर
गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया है कि सरकार इस बिल को लेकर पीछे हटने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक इसी सत्र में लाया जाएगा। वहीं, विपक्ष ने इसे अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर हमला करार दिया है। लोकसभा और राज्यसभा में बिल पारित होने के दौरान जोरदार हंगामा हुआ। खास बात यह रही कि बीजेडी के समर्थन से राज्यसभा में गणित सरकार के पक्ष में आ गया, जिसे प्रधानमंत्री ने “ऐतिहासिक क्षण” बताया।
संविधानिक चुनौती: क्या सुप्रीम कोर्ट पलटेगा फैसला?
अब बड़ा सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाएगा। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास पर नजर डालें, तो संसद द्वारा पारित कई कानूनों को अदालत में चुनौती मिली है, और कुछ को खारिज भी किया गया है।
उदाहरण के लिए:
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केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सुप्रीम कोर्ट ने ‘मूल संरचना सिद्धांत’ स्थापित किया, जिसके तहत संसद संविधान की मूल भावना को नहीं बदल सकती।
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गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संसद मौलिक अधिकारों में कटौती नहीं कर सकती।
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इलेक्टोरल बॉन्ड मामला (2024): कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया, जो यह दर्शाता है कि अदालत सरकार के बड़े फैसलों पर अंकुश लगा सकती है।
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आईआर कोएलो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007): कोर्ट ने तय किया कि संविधान की नौवीं अनुसूची में भी कानून मूल संरचना का उल्लंघन करने पर अमान्य हो सकते हैं।
वक्फ बिल के मामले में भी याचिकाकर्ता इसी तर्क के आधार पर अपनी दलीलें रख रहे हैं। उनका दावा है कि यह संशोधन अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक और संपत्ति संबंधी स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है।
अगला कदम सुप्रीम कोर्ट का
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई संवेदनशील मामलों में ऐतिहासिक फैसले दिए हैं। हालांकि, यह भी सच है कि अदालत हर कानून में हस्तक्षेप नहीं करती। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और धारा 370 जैसे मामलों में कोर्ट ने सरकार के फैसलों को बरकरार रखा। अब देखना होगा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक के मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है।
फिलहाल, देशभर में इस विधेयक को लेकर बहस तेज है और सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम बन चुका है।

Author: manoj Gurjar
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