[the_ad id="102"]

मरीज के नाम में एक अक्षर की भी हुई गडबडी तो नहीं मिलेगी आरजीएचएस की दवाईयां

राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) के तहत लागू की गई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित जांच प्रणाली में गंभीर खामियां सामने आ रही हैं। इन खामियों के कारण मरीजों को समय पर दवा नहीं मिल पा रही है, जिससे प्रदेशभर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है।

नाम की गलती बनी सबसे बड़ी अड़चन

सबसे बड़ी समस्या मरीज के नाम में हो रही त्रुटियों को लेकर है। चिकित्सकों द्वारा लिखी गई पर्चियों में यदि नाम में मात्रा की त्रुटि या कोई मानवीय गलती रह जाती है — जैसे कि ‘विमला’ की जगह ‘बिमला’ लिखा जाना या ‘सुशील’ के स्थान पर ‘सुशीला’ — तो दवा विक्रेता मरीज को आरजीएचएस के अंतर्गत दवा देने से मना कर देते हैं। ऐसे में मरीजों को दोबारा अपॉइंटमेंट लेकर पर्ची बनवानी पड़ती है, जो समय और संसाधनों की बर्बादी है।

भुगतान भी अटका, विक्रेता परेशान

कुछ मामलों में दवा विक्रेताओं ने मरीजों को दवाएं तो दे दीं, लेकिन नाम की विसंगति के कारण आरजीएचएस की ओर से उनका भुगतान अटक गया। कई विक्रेताओं का दावा है कि ऐसे मामलों में न सिर्फ भुगतान रोका जा रहा है, बल्कि उन्हें ब्लैकलिस्ट भी किया जा रहा है। इससे मजबूर होकर मरीजों को जेब से पैसे खर्च कर दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं।

विशेषज्ञ बोले – एआई को और मजबूत बनाना जरूरी

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एआई प्रणाली की सटीकता को बढ़ाने की आवश्यकता है। नामों की पहचान में गलती सीधे तौर पर मरीज की सेहत से जुड़ी सेवाओं को प्रभावित कर रही है। भले ही वित्त विभाग द्वारा दवा विक्रेताओं के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जा रहे हों, लेकिन जमीनी स्तर पर समस्या जस की तस बनी हुई है।

सुनवाई की व्यवस्था नहीं, मरीज बेबस

मरीजों की समस्याओं की कहीं सुनवाई नहीं हो रही है। एक बार पर्ची में नाम गलत हो जाए तो उसे ठीक करवाने की प्रक्रिया जटिल है। बार-बार चिकित्सक से अपॉइंटमेंट लेना हर मरीज के लिए संभव नहीं होता। दवा विक्रेताओं को भी डर है कि गलत पर्ची के आधार पर दवा देने पर उनका बिल रोका जा सकता है।

बजट बढ़ा, लेकिन संदेह भी बढ़ा

दवा विक्रेताओं का कहना है कि योजना का बजट 600 करोड़ से बढ़कर 4000 करोड़ के पार पहुंच गया है, लेकिन यह वृद्धि नामों की गलतियों की वजह से नहीं बल्कि ‘प्रोपेगेंडा मेडिसिन’ को योजना में जोड़ने के कारण हुई है। यदि इन दवाओं को योजना से बाहर किया जाए तो कई अनियमितताओं पर रोक लग सकती है।

निष्पक्ष जांच और ठोस कार्रवाई की मांग

राज्यभर के स्वास्थ्य सेवा प्रदाता यह मांग कर रहे हैं कि सिर्फ एआई आधारित डेटा के आधार पर अस्पतालों को दोषी न ठहराया जाए। ठोस सबूतों और निष्पक्ष जांच के बाद ही कोई कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि निर्दोष अस्पताल और मरीज अनावश्यक परेशानी से बच सकें।

manoj Gurjar
Author: manoj Gurjar

मनोज गुर्जर पिछले 5 वर्षों से डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं और खेल, राजनीति और तकनीक जैसे विषयों पर विशेष रूप से लेखन करते आ रहे हैं। इन्होंने देश-दुनिया की बड़ी घटनाओं को गहराई से कवर किया है और पाठकों तक तथ्यात्मक, त्वरित और विश्वसनीय जानकारी पहुँचाने का काम किया है। मनोज का उद्देश्य है कि हर पाठक को सरल भाषा में सटीक और विश्लेषणात्मक खबरें मिलें, जिससे वह अपनी राय बना सके। वे डिजिटल न्यूज़ की दुनिया में लगातार नई तकनीकों और ट्रेंड्स को अपनाकर अपने लेखन को और प्रभावशाली बना रहे हैं।

Leave a Comment

लाइव क्रिकेट

संबंधि‍त ख़बरें

सोना चांदी की कीमत