राजस्थान में एसआई भर्ती परीक्षा 2021 के बहुचर्चित पेपर लीक मामले में नया मोड़ सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने आरपीएससी के पूर्व सदस्य रामू राम राईका की बेटी और बर्खास्त एसआई शोभा राईका को 2 जून को जमानत दे दी। कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्यभर के युवा और छात्र संगठन गंभीर सवाल उठा रहे हैं – क्या सरकार ने इस जमानत का जानबूझकर विरोध नहीं किया?
कोर्ट का तर्क और सरकार की चुप्पी
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है, और चार्ज फ्रेमिंग की प्रक्रिया लंबी चल सकती है। साथ ही, 130 गवाहों की पेशी में समय लगेगा और आरोपी जांच को प्रभावित नहीं कर सकती, इसलिए जमानत दी जा सकती है।
कोर्ट ने अपने फैसले में अंकिता गोदारा बनाम राजस्थान सरकार केस का हवाला दिया, जिसमें पहले से ही एक आरोपी को इसी तर्क पर जमानत मिल चुकी थी। इसी आधार पर अंकिता गोदारा को 13 मई, प्रभा विश्नोई को 19 मई और शोभा राईका को 2 जून को राहत मिली।
क्या सरकार ने जानबूझकर नहीं किया विरोध?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम सवाल यह है कि राज्य सरकार, विशेष रूप से भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, ने सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी विरोध क्यों नहीं किया? क्या यह सरकार की एक रणनीतिक ‘चूक’ थी या किसी प्रभावशाली व्यक्ति को बचाने की कोशिश?
इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। कई छात्र संगठनों ने आरोप लगाया है कि यदि सरकार दृढ़ता से जमानत का विरोध करती, तो शोभा राईका को राहत नहीं मिलती। युवाओं ने इस घटनाक्रम को न्याय व्यवस्था की विफलता और राजनीतिक हस्तक्षेप का उदाहरण बताया है।
कौन हैं शोभा राईका?
शोभा राईका, जो आरपीएससी के पूर्व सदस्य रामू राम राईका की बेटी हैं, को एसआई भर्ती परीक्षा 2021 में पेपर लीक का लाभ मिलने का आरोप है। मूल परीक्षा में उन्होंने हिंदी में 200 में से 189 और सामान्य ज्ञान में 155 अंक हासिल किए थे। लेकिन एसओजी द्वारा आयोजित दोबारा टेस्ट में वे महज 24 हिंदी और 34 सामान्य ज्ञान के सवालों का ही जवाब दे सकीं। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि उनके पिता रामू राम राईका ने ही पेपर लीक कर उन्हें उपलब्ध कराया, जिसके आधार पर उन्होंने परीक्षा पास की।
