भारत सरकार ने सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के अंतर्गत भारत को मिलने वाले जल संसाधनों के अधिकतम और प्रभावी उपयोग की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार को घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर में प्रारंभिक चरण में मौजूद जलविद्युत परियोजनाओं (Hydro Projects) की जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए विशेष तकनीकी योजनाएं तैयार की जाएंगी। सरकार का यह निर्णय देश की ऊर्जा सुरक्षा, जल प्रबंधन और क्षेत्रीय विकास को मजबूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।
जल प्रबंधन को लेकर रणनीतिक योजना
मंत्री खट्टर ने बताया कि नई परियोजनाओं के लिए विशेष डिजाइन और तकनीकी समाधान अपनाए जाएंगे ताकि भारत को संधि के तहत उपलब्ध जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो परियोजनाएं पहले से पाइपलाइन में हैं और जिनकी तकनीकी रूपरेखा अंतिम रूप ले चुकी है, उनमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा क्योंकि इससे समय और संसाधनों की बर्बादी हो सकती है।
भारत की अधिकार आधारित रणनीति
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि के तहत छह नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी – का जल वितरण तय किया गया था। इसमें सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का पूर्ण अधिकार भारत को दिया गया, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया। भारत को इन तीन नदियों से सीमित जल उपयोग (जैसे जलविद्युत उत्पादन और सिंचाई) की अनुमति है।
जलविद्युत उत्पादन को मिलेगा नया बल
मोदी सरकार की नई योजना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की जल भंडारण क्षमता बढ़ाकर जलविद्युत उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे न सिर्फ क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन को गति मिलेगी बल्कि बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और पेयजल जैसे क्षेत्रों में भी प्रबंधन और आपूर्ति को सुदृढ़ किया जा सकेगा।
जम्मू-कश्मीर के लिए क्या है महत्व?
जम्मू-कश्मीर अपनी भौगोलिक स्थिति और नदियों की उपलब्धता के चलते हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के लिए उपयुक्त क्षेत्र है। यहां की परियोजनाएं न केवल बिजली उत्पादन में योगदान करती हैं, बल्कि स्थानीय रोजगार और आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देती हैं। नई योजना से मानसून में बाढ़ के खतरे को कम करने और सूखे के समय जल उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
चुनौतियों से निपटने की तैयारी
हालांकि योजना बेहद प्रभावशाली है, पर इसके समक्ष पर्यावरणीय प्रभाव, स्थानीय समुदायों का समर्थन, तकनीकी जटिलताएं और पाकिस्तान के साथ जल संधि को लेकर संवेदनशील संतुलन बनाए रखने जैसी चुनौतियां भी हैं। सरकार ने भरोसा दिलाया है कि सभी नए प्रोजेक्ट्स को पर्यावरणीय और सामाजिक मानकों के अनुरूप तैयार किया जाएगा और उन्हें तय समयसीमा में पूरा किया जाएगा।
