जयपुर, 01 मार्च 2025
अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर चल रहे विवादित दावे पर आज सिविल न्यायालय पश्चिम में सुनवाई नहीं हो सकी। न्यायालय ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 19 अप्रैल तय की है। बताया जा रहा है कि वर्क सस्पेंड होने के कारण सुनवाई टालनी पड़ी।
क्या है मामला?
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि वर्तमान में स्थित अजमेर दरगाह का स्थान पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था। उनका कहना है कि इस पर 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act, 1991) लागू नहीं होता। हिंदू सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा इस मामले की पैरवी कर रहे हैं।
हिंदू सेना का पक्ष
हिंदू सेना का कहना है कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह कोई पूजा पद्धति का स्थान नहीं है, इसलिए इस पर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता। उनका दावा है कि ऐतिहासिक तथ्यों और कानूनी आदेशों के आधार पर इस स्थान की पुनः जांच होनी चाहिए। हिंदू सेना ने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि मुस्लिम पक्ष की सभी दलीलें आधारहीन हैं और उनकी याचिका खारिज हो सकती है।
अजमेर दरगाह प्रबंधन समिति का बयान
अजमेर दरगाह प्रबंधन समिति ने हिंदू सेना के दावे को पूरी तरह से गलत बताते हुए कहा कि दरगाह एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जहां हर धर्म और संप्रदाय के लोग श्रद्धा के साथ आते हैं। समिति ने यह भी कहा कि यह स्थल हमेशा से ही श्रद्धालुओं के लिए खुला रहा है और किसी विशेष धर्म का स्थान नहीं रहा है।
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?
1991 में बने इस कानून के अनुसार, 15 अगस्त 1947 के बाद से किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। हालांकि, हिंदू सेना का दावा है कि यह कानून दरगाह पर लागू नहीं होता क्योंकि यह कोई पूजा स्थल नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक दरगाह है।
अगली सुनवाई 19 अप्रैल को
आज न्यायाधीश मन मोहन चंदेल की कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन वर्क सस्पेंड होने के कारण इसे आगे बढ़ा दिया गया। अब इस मामले में अगली सुनवाई 19 अप्रैल को होगी।
इस विवाद पर सभी पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं और अब कोर्ट का निर्णय इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण होगा।
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