राजस्थान के किशनगढ़ में नकली खाद के मामलों के बीच अब खाद वितरण में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है। क्रय-विक्रय सहकारी समितियों और इफको के बिक्री केंद्रों पर किसानों को सब्सिडी वाली डीएपी और यूरिया खाद केवल इस शर्त पर दी जा रही है कि वे इसके साथ 600 रुपये की 500 एमएल नैनो डीएपी (तरल) और 225 रुपये की नैनो यूरिया भी खरीदें। यानी किसानों को मजबूरी में महंगी तरल खाद लेने को बाध्य किया जा रहा है — वह भी बिना पक्के बिल के।
प्रतिनिधि बोले – “ऊपर से आदेश हैं”
मिल रोड और चमड़ाघर बिक्री केन्द्रों के प्रतिनिधियों का कहना है कि उन्हें यह नैनो खाद बेचने के “ऊपर से आदेश” मिले हैं। कई स्थानों पर किसानों को केवल कच्ची रसीद देकर तरल खाद थमा दी जा रही है। इससे न केवल पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं, बल्कि यह किसान हितों के खिलाफ सीधी चोट मानी जा रही है।
विधानसभा में उठ चुका है मामला
यह कोई नई शिकायत नहीं है। इससे पहले भी नैनो खाद की अनिवार्य बिक्री का मामला राजस्थान विधानसभा में उठ चुका है, लेकिन विभागीय कार्रवाई केवल कागज़ों तक सीमित रही है।
विशेषज्ञ की चेतावनी – “थोपना नहीं, समझाना ज़रूरी”
नैनो खाद के जनक वैज्ञानिक डॉ. रमेश रलिया ने इस तरह की जबरन बिक्री को किसानों के साथ धोखा बताया है। उन्होंने कहा, “गुणवत्ता वाले उत्पाद को थोपा नहीं जा सकता। किसानों को इसके फायदे बताकर, प्रमाणिकता के आधार पर ही खरीद को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”
किसानों की पीड़ा – “मजबूरी है, लेना पड़ता है”
किशनगढ़ के मुण्डौती गांव के किसान रामेश्वर का कहना है, “हमें मजबूरी में नैनो खाद लेनी पड़ती है, क्योंकि अगर नहीं ली तो सब्सिडी वाली खाद भी नहीं मिलेगी।” प्रदेशभर से ऐसी शिकायतें आ रही हैं, लेकिन कृषि विभाग और सहकारिता विभाग के उच्च अधिकारी अब तक चुप्पी साधे बैठे हैं।
सरकारी रुख – “नैनो खाद वैकल्पिक है”
कृषि विभाग का कहना है कि समितियों को केवल प्रोत्साहन के लिए निर्देश दिए गए हैं, अनिवार्यता का कोई आदेश नहीं है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है।
विशेष टिप्पणी
इस प्रकरण से दो बातें साफ होती हैं — या तो विभाग की निगरानी बेहद ढीली है, या फिर मिलीभगत के तहत किसानों से जबरन वसूली हो रही है। ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि किसानों का भरोसा न टूटे और तकनीकी नवाचार का दुरुपयोग न हो।
