राजस्थान भाजपा ने राज्य में सुशासन और जनसमर्थन को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए ‘गुजरात मॉडल’ की ट्रेनिंग लेने की पहल की है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, मंत्री और भाजपा के विधायक गुजरात के केवड़िया में तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा ले रहे हैं, जो 7 मई तक चलेगा।
सुशासन का पाठ
इस प्रशिक्षण शिविर में विधायकों को गुड गवर्नेंस, विधायी कार्यों, जनता से संवाद, और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की ट्रेनिंग दी जा रही है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शुक्रवार शाम टेंट सिटी-2 में इस शिविर का उद्घाटन किया। शिविर में राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के कई वरिष्ठ नेता और विशेषज्ञ बतौर वक्ता भाग ले रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, अब तक 60 से अधिक विधायक शिविर में पहुंच चुके हैं। जबकि कुछ विधायक व्यक्तिगत और स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थित हैं। कार्यक्रम के दौरान प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल और अन्य वरिष्ठ नेता विधायकों के साथ संवाद करेंगे।
गहलोत का हमला: “मौज-मस्ती के लिए गुजरात में सरकार”
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस शिविर पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “जब राज्य की जनता बिजली-पानी और चिकित्सा संकट से जूझ रही है, तब मुख्यमंत्री सहित पूरी सरकार गुजरात में टैंट सिटी में मौज-मस्ती कर रही है। भाजपा हाईकमान शायद मान चुका है कि राजस्थान की सरकार डेढ़ साल में ही विफल हो गई है, इसीलिए अब प्रशिक्षण की जरूरत पड़ रही है।” गहलोत ने यह भी सवाल उठाया कि जब राजस्थान में G-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजन हो सकते हैं, तो विधायकों की ट्रेनिंग राजस्थान में क्यों नहीं हो सकती? “क्या यह अप्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखा रहा कि राजस्थान की सरकार गुजरात से चलाई जा रही है?” – उन्होंने कटाक्ष किया।
विपक्ष के अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया
विधानसभा में नेता विपक्ष टीकाराम जूली ने कहा, “यह दुखद है कि राजस्थान की सरकार को शासन चलाने की ट्रेनिंग अब गुजरात जाकर लेनी पड़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि डेढ़ साल तक राज्य को बिना प्रशिक्षण वाली सरकार चला रही थी।” उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार को इस समय गर्मी में बिजली और पानी की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए था, ना कि नर्मदा किनारे रिसॉर्ट में समय बिताने पर।
क्या आएगा राजस्थान में ‘गुजरात मॉडल’?
शिविर की समयसीमा और वक्ताओं को देखते हुए भाजपा का यह प्रयास केवल प्रशासनिक दक्षता तक सीमित नहीं दिखता, बल्कि यह 2028 के चुनावों की राजनीतिक नींव रखने की कोशिश भी माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि यह प्रशिक्षण केवल कागज़ी साबित होता है या वास्तव में राजस्थान में सुशासन और नीति क्रियान्वयन की दिशा में कोई ठोस असर डालता है।
