मॉडल व अभिनेत्री इशिका जैन ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिए जाने को लेकर फिर शुरू की मुहिम

झुंझुनूं। फ़िल्म अभिनेत्री इशिका जैन ने मायड़ भाषा राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सभी प्रदेशवासियों के साथ मिलकर एक मुहिम चला रही हैं।इन्होने कहा कि सभी राजस्थानी जो इस भाषा से प्यार करते हैं वे सब इस मुहिम में मेरा साथ देकर सोशल मीडिया एवं प्रिंट मीडिया संस्थानों पर सूचनाएं भेजें ताकि राजस्थानी भाषा को केंद्र सरकार आठवीं सूची में शामिल करके इसको संवैधानिक मान्यता मिल सके।यह भाषा बेहद मधुर है। राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश हरियाणा,पंजाब व पाकिस्तान के कई पश्चिमी हिस्सों में बहावलपुर आदि में बोली जाती है।इसका इतिहास हजारों साल पुराना है लेकिन इतना समृद्ध इतिहास होने के बावजूद भी आज की युवा पीढ़ी को इस भाषा की जानकारी नहीं है।

सोशल मीडिया पर इसकी उपस्थिति बिल्कुल शून्य है।अब इस भाषा को कैसे मान्यता मिलेगी ? जब हम सब लोग बिल्कुल शांत होकर अंग्रेजी के गुलाम बनकर खुश होते रहेंगे। राजस्थान के वीर महाराणा प्रताप व मीराबाई को सभी पसंद करते हैं लेकिन वे जो भाषा बोलते थे उनको क्यों हम पसंद नहीं करते हैं? हिंदी को हम धाराप्रवाह रूप से बोलते हैं वह भी असल में राजस्थानी भाषा की विरासत है। राजस्थान का मध्यकाल बेहद समृद्ध था।यहां अद्भुत ग्रंथ रचे गए और वह अलग-अलग रसों को बेहद खूबसूरती से एक साथ प्रस्तुत करने में सक्षम होते थे। राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा दिलाने में एक प्रमुख अड़चन भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से भी है। उनका कहना है की नोट पर अब किसी भाषा को छापने की जगह नहीं है। हालांकि नोट पर सभी मान्यता प्राप्त भाषाएं नहीं छापी जाती।प्रदेश के कई इलाकों में मारवाड़ी भाषा बोली जाती है खासकर जोधपुर, जैसलमेर व बीकानेर इलाकों में यह बोली प्रचलित है।

इस कारण इसी को ही राजस्थानी समझ लिया जाता है।जयपुर सीकर एवं अन्य आंचल जैसे कोटा,भरतपुर, करौली,सवाई माधोपुर वालों को लगता है कि यही राजस्थानी भाषा है।नईपीढ़ी राजस्थानी भाषा को भूल रही है।बच्चे अपने घर से स्वाभाविक तौर पर राजस्थानी सीखें, ताकि आगे जीवन भर में इस भाषा को अपने क्रियाकलाप में आगे ला सकें। पंजाबी,गुजराती व मराठी भाषा हिंदी को नुकसान नहीं पहुंचा सकी तो राजस्थानी भाषा हिंदी को नुकसान नहीं पहुंचाएगी। इसी कारण हम लोग मायड़ भाषा को अभी तक संवैधानिक मान्यता नहीं दिला सके हैं।क्योंकि पुरजोर तरीके से हम लोगों ने कभी भी इस मांग को उठाया ही नहीं। सभी कद्रदानों से निवेदन है कि मायड़ भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाकर इस समृद्धतम भाषा के इतिहास को आगे बढ़ाएं।

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