मुंबई, 14 दिसंबर 2024 महाराष्ट्र में कैबिनेट विस्तार के तुरंत बाद उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक्शन मोड में आ गए हैं। उन्होंने अपनी पार्टी शिवसेना के मंत्रियों पर सख्ती दिखाते हुए एक नई रणनीति अपनाई है। शिंदे ने साफ कर दिया है कि अब मंत्रियों को काम के आधार पर आंका जाएगा और नतीजे न देने वालों को पद छोड़ना होगा।
शपथपत्र का फरमान
शिंदे ने शिवसेना के मंत्रियों से एक शपथपत्र लेने का फैसला किया है। इस शपथपत्र में मंत्री यह वचन देंगे कि यदि ढाई साल के कार्यकाल के बाद जरूरत पड़ी तो वे पद छोड़ने के लिए तैयार रहेंगे, ताकि अन्य दावेदारों को भी मौका मिल सके। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शिवसेना मंत्री शंभुराज देसाई ने कहा, “यह शपथपत्र इसलिए लिया जा रहा है ताकि पार्टी नेतृत्व को किसी भी समय मंत्रियों को हटाने का आधिकारिक अधिकार मिल सके।”
‘काम करो या छोड़ो’ की नीति
उपमुख्यमंत्री शिंदे ने घोषणा की है कि शिवसेना अब ‘काम करो या छोड़ो’ की नीति पर चलेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो मंत्री बेहतर काम करेंगे, उन्हें ही अपनी कुर्सी पर बने रहने का मौका मिलेगा। शिंदे के एक करीबी सहयोगी ने बताया कि शिंदे को शिवसेना विधायकों की वफादारी पर संदेह है, इसलिए वे सत्ता का समान वितरण सुनिश्चित कर सभी को साथ रखना चाहते हैं।
विधायकों में असंतोष के संकेत
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के दबाव में शिवसेना के तीन विधायकों — दीपक केसरकर, अब्दुल सत्तार और तानाजी सावंत — को हटाए जाने से असंतोष फैल रहा है। तीनों नेता अपनी अनदेखी से नाखुश बताए जा रहे हैं। हालांकि, एक और शिवसेना मंत्री संजय राठौड़, जिन पर कई शिकायतें थीं, उन्हें पद पर बरकरार रखा गया है। सूत्रों के अनुसार, ऐसा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ राठौड़ की करीबी दोस्ती की वजह से हुआ है।
शिंदे की रणनीति: सत्ता और नियंत्रण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखने और भीतरूख असंतोष को रोकने के लिए इस नई रणनीति पर काम कर रहे हैं। शपथपत्र के जरिए वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पार्टी के सभी मंत्री उनके निर्णयों के प्रति जवाबदेह रहें।
आगे की राह
शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना की इस नई नीति का क्या असर होगा, यह देखने वाली बात होगी। एक ओर जहां पार्टी नेतृत्व शक्ति प्रदर्शन कर रहा है, वहीं भीतरखाने असंतोष की लहरें पार्टी के लिए नई चुनौती बन सकती हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में यह कदम आने वाले समय में बड़े राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।